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बृहस्पति ग्रह-Jupiter Planet In Hindi

  • बृहस्पति ग्रह आकार में सबसे बड़ा ग्रह है और सूर्य से दुरी के क्रम में पांचवे नंबर पर है।
  • बृहस्पति ग्रह के लगभग 16 उपग्रह हैं जिसमें से गैनीमीड सबसे बड़ा उपग्रह है पीले रंग का है।
  • बृहस्पति ग्रह पृथ्वी से लगभग 133 गुना बड़ा है।
  • इस गृह के वायुमंडल में हाइड्रोजन, हीलियम की अधिक मात्रा पाई जाती है।
  • बृहस्पति ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 11 साल 9 महीने का समय लगता है।
  • यह अपनी धुरी पर सबसे ज्यादा तेज गति से घूमता है और अपनी धुरी पर एक चक्कर 9 घंटे 55 मिनट में लगा लेता है।

बृहस्पति ग्रह (Jupiter In Hindi) :

बृहस्पति ग्रह सूर्य से पांचवें नंबर का और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। बृहस्पति का हमारे नवग्रहों में उच्चतम स्थान है और इन्हें सबसे प्रभावशाली ग्रह माना गया है। बृहस्पति वैदिक ज्योतिष में देवताओं के भी शिक्षक और गुरु माने जाते हैं। बृहस्पति एक बहुत ही शुभ ग्रह तथा भाग्य, नियम, धर्म, दर्शन, अध्यात्म, धन और संतान का प्रतिनिधित्व करता है।

अनुकूल होने पर यह ग्रह नाम, शोहरत, सफलता, सम्मान, धन, संतान और संतान के साथ अच्छे संबंध देता है। सौर मंडल में मौजूद सभी ग्रहों की तुलना में यह ढाई गुना अधिक भारी है। बृहस्पति ग्रह को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रह के रूप में जाना जाता है।

इस ग्रह को प्राचीनकाल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता है और यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया तब बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चंद्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है।

अपने तेज घूर्णन की वजह से बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल है। बृहस्पति ग्रह मुख्य रूप से गैसों का बना है और इसलिए एक गैस की दिग्गज कंपनी के रूप में जाना जाता है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियाँ नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ अलग-अलग वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है।

यह ग्रह एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति ग्रह का अनेक मौकों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलीलियो यान के द्वारा अंवेषण किया जाता रहा है। फरवरी 2007 में न्यू होराएजंज प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का प्रयोग कर बढाई गई थी।

बृहस्पति ग्रह की रुपरेखा :

बृहस्पति ग्रह का द्रव्यमान 18,98,130 खरब किलोग्राम है। बृहस्पति ग्रह का भूमध्य रेखिए व्यास 1,42,984 किलोमीटर और द्रवीय व्यास 1,33,709 किलोमीटर है। बृहस्पति ग्रह की भूमध्यरेखा की लंबाई 4, 39,264 किलोमीटर और सूर्य से दूरी 77 करोड़, 83 लाख 40 हजार 821 किलोमीटर है। बृहस्पति के ज्ञात उपग्रहों की संख्या 67 है। बृहस्पति ग्रह का एक साल पृथ्वी के 11.86 साल के बराबर होता है। बृहस्पति ग्रह की सतह का औसतन तापमान -108०C होता है।

बृहस्पति ग्रह का गठन :

बृहस्पति प्राथमिक तौर पर गैसों और तरल पदार्थों से बना हुआ है। चार गैसीय ग्रहों में सबसे बड़ा होने के साथ यह 1,42,984 किलोमीटर विषुववृत्तिय व्यास के साथ सौरमंडल का भी सबसे बड़ा ग्रह है। बृहस्पति का 1.326 ग्राम/सेंटीमीटर3 का घनत्व गैसीय ग्रहों में दूसरा सबसे अधिक लेकिन सभी चार स्थलीय ग्रहों से कम है।

बृहस्पति ग्रह की रासायनिक संरचना :

बृहस्पति ग्रह का उपरी वायुमंडल 88-92% हाइड्रोजन और 8-92% हीलियम से बना है और यहाँ प्रतिशत का तात्पर्य अणुओं की मात्रा से है। हीलियम परमाणु का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु से चार गुना अधिक होता है। यह संरचना तब बदल जाती है जब इसके द्रव्यमान के अनुपात को विभिन्न परमाणुओं के योगदान के रूप में वर्णित किया जाता है।

इस तरह से वातावरण लगभग 75% हाइड्रोजन और 24% हीलियम द्रव्यमान द्वारा और शेष एक प्रतिशत द्रव्यमान अन्य तत्वों से मिलकर बना होता है। इसके आंतरिक भाग में घने पदार्थ मिलते हैं इस प्रकार मौटे तौर पर वितरण 71% हाइड्रोजन, 24% हीलियम और 5% अन्य तत्वों के द्रव्यमान का होता है।

बृहस्पति ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र हमारे सौर मंडल के किसी भी अन्य ग्रह से ज्यादा शक्तिशाली है और वैज्ञानिक कहते हैं कि इसकी वजह से बृहस्पति के भीतर की धातु हाइड्रोजन है। बृहस्पति के वायुमंडल में मीथेन, जल वाष्प, अमोनिया और सिलिकॉन आधारित यौगिक मिले है। इसमें कार्बन, इथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, फोस्फाइन और सल्फर के होने के संकेत मिले हैं।

वायुमंडल के बाह्यतम परत में जमीं हुई अमोनिया के क्रिस्टल होते हैं। अवरक्त पराबैंगनी मापन के माध्यम से जांचने पर बेंजीन और अन्य हाइड्रोकार्बन की मात्रा भी पाई गई है। उपरी वायुमंडल में नियान की मात्रा 20 भाग प्रति दस लाख है जो सूर्य में प्रचुर मात्रा में लगभग 10 भाग प्रति दस लाख होती है। स्पेक्ट्रोस्कोपी के आधार पर शनि संरचना में बृहस्पति के समान समझा जाता है लेकिन अन्य दो गैसीय ग्रहों युरेनस और नेपच्यून के पास अपेक्षाकृत बहुत कम हाइड्रोजन और हीलियम है।

बृहस्पति ग्रह का द्रव्यमान :

बृहस्पति का द्रव्यमान हमारे सौरमंडल के अन्य सभ ग्रहों के संयुक्त द्रव्यमान का 2.5 गुना है। यह इतना बड़ा है कि सूर्य के साथ इसका बेरिसेंटर सूर्य की सतह के उपर सूर्य के केंद्र से 1.068 सौर त्रिज्या पर स्थित है। इस ग्रह की त्रिज्या पृथ्वी से 11 गुना बड़ी है पर यह अपेक्षाकृत बहुत कम घना है।

बृहस्पति ग्रह का आयतन 1321 पृथ्वियों के बराबर है तो द्रव्यमान पृथ्वी से मात्र 318 गुना है। बृहस्पति ग्रह की त्रिज्या सूर्य की त्रिज्या का लगभग 1/10 है और इसका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान का हजारवां हिस्सा मात्र है इसलिए दोनों निकायों का घनत्व समान है। इस ग्रह को एक सितारा बनाने हेतु हाइड्रोजन संलयन के लिए 75 गुना बड़ा होने की आवश्यकता होगी सबसे छोटे लाल बौना तारे की त्रिज्या गुरु से लगभग 30% ज्यादा है।

इसके बाद भी गुरु ग्रह अभी भी सूर्य से प्राप्त गर्मी की तुलना में ज्यादा विकरित करता है और यह प्राप्त कुल सौर विकिरण के बराबर ही ऊष्मा की मात्रा अपने भीतर उत्पादित करता है। यह अतिरिक्त तापीय विकिरण उष्मप्रवैगिकी प्रकिया के माध्यम से केल्विन-हेल्महोल्ट्ज तंत्र द्वारा उत्पन्न होती है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ग्रह में प्रतिवर्ष लगभग 2 सेंटीमीटर संकुचन होता है। पहले जब यह ग्रह बना था तब यह बहुत ही तप्त था और इसका व्यास भी वर्तमान से दो गुना था।

बृहस्पति ग्रह की आंतरिक संरचना :

बृहस्पति का घना कोर तत्वों के एक मिश्रण के साथ बना है जो कुछ हीलियम युक्त तरल हाईड्रोजन धातु की परत से ढंका है और इसकी बाहरी परत मुख्य रूप से आणविक हाइड्रोजन से बनी हुई है। इस आधारभूत रुपरेखा के अतिरिक्त वहां अभी भी बहुत अनिश्चितता है।

इतनी गहराई के पदार्थों पर ताप और दाब के गुणों को देखते हुए प्रायः इसके कोर को चट्टानी जैसा माना गया है परन्तु इसकी विस्तृत संरचना अज्ञात है। सन् 1997 में गुरुत्वाकर्षण माप द्वारा कोर के अस्तित्व का सुझाव दिया गया था जो इशारा कर रहा है कि कोर का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 12 से 45 गुना या बृहस्पति के कुल द्रव्यमान का लगभग 4%-14% है। इसका कोर क्षेत्र घने धातु हाइड्रोजन से घिरा हुआ है जो बाहर की तरफ बृहस्पति की त्रिज्या के लगभग 78% तक फैला है।

हीलियम और नियान वर्षा की बूंदों के रूप में इस परत से होकर तेजी से नीचे की तरफ बरसते हैं जिससे उपरी वायुमंडल में इन तत्वों की बहुतायत में कमी हो जाती है। धातु हाइड्रोजन की परत के ऊपर हाइड्रोजन का पारदर्शी आंतरिक वायुमंडल स्थित है। इस गहराई पर तापमान क्रांतिक तापमान के ऊपर होता है जो हाईड्रोजन के लिए सिर्फ 33 केल्विन है।

इस अवस्था में द्रव और गैस में कोई भेद नहीं रह जाता है तब हाइड्रोजन को परम क्रांतिक तरल अवस्था में होना कहा जाता है। ऊपरी परत में गैस की तरह व्यवहार करना हाइड्रोजन के लिए ज्यादा सुगम होता है जो नीचे की तरफ विस्तार के साथ 1000 किलोमीटर गहराई तक बना रहता है और ज्यादा गहराई में यह तरल जैसा होता है।

एक बार नीचे उतर जाने पर गैस धीरे-धीरे गरम और घनी होती जाती है लेकिन भौतिक रूप से इसकी कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं है। बृहस्पति के भीतर कोई की तरफ जाने से ताप और दाब में तेजी से वृद्धि होती है। यह माना जाता है कि 10,000 केल्विन तापमान और 200 GPa दबाव के चरण संक्रमण क्षेत्र पर जहाँ हाइड्रोजन अपने क्रांतिक बिंदु से ज्यादा गर्म होती है और धातु बन जाती है। कोर की सीमा पर तापमान 36,000 केल्विन और आंतरिक दबाव 3000-4500 GPa होने का अनुमान है।

बृहस्पति ग्रह का वायुमंडल :

बृहस्पति पर सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रहीय वायुमंडल है जो ऊँचाई में 5000 किलोमीटर तक फैला हुआ है। बृहस्पति ग्रह पर कोई धरातल नहीं है इसलिए साधारणतया वायुमंडल के आधार को उस बिंदु पर माना जाता है जहाँ वायुमंडलीय दाब 10 बार इकाई के समान या पृथ्वी के सतही दबाव का 10 गुना हो।

बृहस्पति ग्रह की बादल परत :

बृहस्पति हमेशा अमोनिया क्रिस्टल और संभवतः अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड के बादलों से ढका रहता है। यह बादल ट्रोपोपाउस में स्थित है और विभिन्न अक्षांशों की धारियों में व्यवस्थित है इन्हें उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के रूप में जाना जाता है। इन धारियों को हल्के रंग के क्षेत्रों और गहरे रंग की पट्टियों में उपविभाजित किया गया है।

इन विरोधी परिसंचरण आकृतियों की पारस्परिक क्रिया तूफान और अस्तव्यस्तता की वजह होती है। क्षेत्रों में पवन की गति 100 मीटर/सेकेण्ड होना आम बात है। क्षेत्रों की चौडाई, रंग और तीव्रता में साल-दर-साल भिन्नता देखी गई है लेकिन उनमें इतनी स्थिरता बनी रहती है कि खगोलविद पहचानकर उन्हें कोई नाम दे सके।

बादल परत की गहराई लगभग 50 किलोमीटर है और यह बादलों के दो पटवों से मिलकर बनी है। एक निचला मोटा पटाव और एक पतला साफ सुथरा क्षेत्र। बृहस्पति ग्रह के वातावरण में बिजली की चमक के प्रमाण मिलने से लगता है कि अमोनिया परत के अंदर जलीय बादलों की एक पतली परत हो सकती है।

बिजली की यह चमक जलीय ध्रुवता की वजह से होती है जो जलीय बादलों को बिजली उत्पादन के लिए जरूरी पृथक आवेश बनाने के लिए सक्षम बनाती है। यह विद्युतीय चमक पृथ्वी पर होने वाली बिजली की चमक से हजार गुना तक शक्तिशाली हो सकती है। बढती आंतरिक गर्मी से प्रेरित होकर जलीय बादल गरज का रूप ले सकते है। बृहस्पति के बादलों का नारंगी और भूरापन यौगिकों द्वारा उमड़ने की वजह से है और रंगों में यह बदलाव तब होता है जब सूर्य का पराबैंगनी प्रकाश इसे उजागर करता है।

बृहस्पति पर विशाल लाल धब्बा और अन्य छोटे भंवर :

बृहस्पति पर सबसे जानी पहचानी आकृति विशाल लाल धब्बा या ग्रेट रेड स्पॉट है। यह पृथ्वी से भी बड़ा एक प्रति चक्रवाती तूफान है जो भूमध्यरेखा के दक्षिण में 22० पर स्थित है। इसके अस्तित्व को सन् 1831 से या इससे भी पहले सन् 1665 से जान लिया गया था। गणितीय मॉडल बताते है कि यह तूफान शाश्वत है और इस आकृति का अस्तित्व चिरस्थायी है।

इस तूफान का आकार इतना पर्याप्त है कि इसे 12 सेंटीमीटर एपर्चर या उससे अधिक भू-आधारित दूरदर्शी से आसानी से देखा जा सकता है। यह अंडाकार धब्बा 6 घंटे की अवधि के संग वामावर्त घूर्णन करता है। इसकी लंबाई 24 से 40,000 किलोमीटर और चौडाई 12 से 14,000 किलोमीटर है।

यह इतना बड़ा है कि इसमें तीन पृथ्वियां समा जाएं। इस तूफान की अधिकतम ऊँचाई ऊपरी बादलों से भी 8 किलोमीटर ऊपर है। इस गैसीय ग्रह के अशांत वातावरण में इस प्रकार के तूफान होना आम बात है। बृहस्पति पर सफेद और भूरे रंग के बेनाम अनेको छोटे धब्बे है। सफेद धब्बे ऊपरी वातावरण के अंदर अपेक्षाकृत शांत बादल से मिलकर बने है इसके विपरीत भूरे धब्बे गर्म होते है और सामान्य बादल परत के अंदर बनते है।

इससे पहले वॉयजर इस आकृति की तूफानी प्रवृत्ति की पुष्टि करता, यह जान लिया गया था कि इस धब्बे का संबंध इस ग्रह की किसी गहरी रचना से नहीं था और इस बात के सबूत थे जैसे – इसकी घूर्णन गति अपने आस-पास मौजूद वातावरण की अपेक्षा भिन्न है और कभी यह तेज घूमता है तो कभी बहुत धीरे। यह तूफानी धब्बा अपने दर्ज इतिहास के दौरान किसी भी संभावित नियत आवर्ती निशानी के सापेक्ष ग्रह के चारों तरफ कई बार यात्रा कर चुका है।

बृहस्पति ग्रह के ग्रहीय छल्ले :

बृहस्पति ग्रह में एक धुंधली वलय प्रणाली है जो मुख्यतः तीन भागों से बनी है। अंदरूनी छल्ला, अपेक्षाकृत चमकीला मुख्य छल्ला और बाहरी पतला छल्ला। ऐसा लगता है कि यह छल्ले शनि ग्रह के छल्लों जैसे बर्फीले न होकर धूल से बने हैं। इसका मुख्य छल्ला एड्रास्टीया और मीटस चंद्रमा की सामग्री के छिटकने से बना है।

यह चाँद पर वापस गिरने वाली वह सामग्री है जिसे बृहस्पति के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण ने अपनी तरफ खींच लिया है। इस घूमती हुई सामग्री की कक्षा की दिशा बृहस्पति की तरफ है। इसी प्रकार थीबी और ऐमलथीया चंद्रमा, दो अलग-अलग घटकों की धूलयुक्त बाहरी छल्ले बनाते है। ऐमलथीया की कक्षा के साथ वहां चट्टानी छल्ले के भी प्रमाण मिले है जो इसी चंद्रमा के मलबे से बने हो सकते है।

बृहस्पति ग्रह का मेग्नोटोस्फेयर :

बृहस्पति ग्रह का व्यापक चुंबकीय क्षेत्र या मेग्नेटोस्फेयर पृथ्वी की तुलना में 14 गुना शक्तिशाली है। भूमध्यरेखा पर 4.2 गॉस से लेकर ध्रुवों पर 10 से 14 गॉस तक का विचरण इसे सौरमंडल का सबसे शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनता है। इसकी उत्पत्ति भंवर से होती है जो हाइड्रोजन कोर के अंदर सुचालक पदार्थों के घूमने से बनती है।

लो चंद्रमा पर ज्वालामुखी बड़ी मात्रा में सल्फर-डाई-आक्साइड गैस उत्सर्जित करके अपनी कक्षा के साथ गैस टॉरस बनाता है। यह गैस मेग्नोटोस्फेयर में आयनिकृत होकर सल्फर और ऑक्सीजन आयन उत्पादित करती है। ये दोनों बृहस्पति के वायुमंडल से उत्पन्न हाइड्रोजन आयनों से मिलकर बृहस्पति के विषुवव्रत तल में एक प्लाज्मा चादर बनाते है।

इस चादर में प्लाज्मा ग्रह के साथ-साथ घूमने लगता है और चुंबकीय डिस्क की तुलना में द्विध्रुवीय विरूपण की वजह बनता है। प्लाज्मा चादर के अंदर इलेक्ट्रोन एक शक्तिशाली रेडियो तरंग उत्पन्न करते है जो 0.6 से 0.3 मेगा हर्ट्ज परास का विस्फोट उत्पन्न करता है। बृहस्पति ग्रह का मेग्नेटोस्फेयर ग्रह के ध्रुवीय क्षेत्रों से तीव्र धारा की रेडियो उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।

लो चन्द्रमा पर ज्वालामुखी गतिविधि, बृहस्पति ग्रह के मेग्नेटोस्फेयर में गैस फेंककर ग्रह के आस-पास कणों का टॉरस बनाती है। जैसे ही लो टॉरस से होकर गुजरता है टकराहट से आल्फवेन तरंग उत्पन्न होती है जो आयनित पदार्थ को वहन कर बृहस्पति के ध्रुवीय क्षेत्रों में ले जाती है।

परिणामस्वरूप, साइक्लोट्रोन मेसर तंत्र के माध्यम से रेडियो तरंगें उत्पन्न होती है और सौर ऊर्जा एक शंकू आकार की सतह के साथ बाहर की तरफ फैलती है। जब पृथ्वी इस शंकु को काटती है, बृहस्पति से रेडियों उत्सर्जन, सौर रेडियो उत्सर्जन से ज्यादा हो सकता है।

बृहस्पति ग्रह की परिक्रमा एवं घूर्णन :

बृहस्पति एक ही ऐसा ग्रह है जिसका सूर्य के संग साझा द्रव्यमान केंद्र सूर्य के आयतन से बाहर स्थित है। बृहस्पति की सूर्य से औसत दूरी 77 करोड़ 80 लाख किलोमीटर है तथा सूर्य का एक पूरा चक्कर पृथ्वी के प्रत्येक 11.86 साल में लगाता है। शनि ग्रह की तुलना में दो-तिहाई कक्षीय अवधि सौरमंडल के इन दो बड़े ग्रहों के बीच 5:2 का परिक्रमण तालमेल बनाता है।

बृहस्पति ग्रह के सूर्य के 5 चक्कर और शनि सूर्य के दो चक्कर समान समय में लगाते है। इसकी अंडाकार कक्षा पृथ्वी की तुलना में 1.31० झुकी हुई है। 0.048 विकेंद्रता की वजह से गुरु की सूर्य से दूरी विविधतापूर्ण है। इसके उपसौर और अपसौर के मध्य का अंतर 7.5 करोड़ किलोमीटर है।

बृहस्पति ग्रह का अक्षीय झुकाव केवल 3.13० होने से पृथ्वी और मंगल जैसे महत्वपूर्ण मौसमी परिवर्तनों का इस ग्रह को कोई भी अनुभव नहीं है बृहस्पति का घूर्णन सौरमंडल के सभी ग्रहों में सबसे तेज है यह अपने अक्ष पर एक घूर्णन 10 घंटे से थोड़े कम समय में पूरा करता है जिससे भूमध्य रेखीय उभार बनता है जो भूआधारित दूरदर्शी से आसानी से दिखाई देता है।

इस घूर्णन को 24.79 मीटर/सेकेण्ड2 भूमध्य रेखीय सतही गुरुत्वाकर्षण की तुलना में भूमध्य रेखा पर 1.67 मीटर/सेकेण्ड2 केंद्राभिमुख त्वरण की आवश्यकता होती है इस प्रकार भूमध्य रेखीय सतह पर परिणामी त्वरण सिर्फ 23.12 मीटर/सेकेण्ड2 होता है। इस ग्रह का आकार चपटा उपगोल जैसा है जिसका अर्थ है इसके भूमध्यरेखा के आर-पार का व्यास इनके ध्रुवों के मध्य के व्यास से 9275 किलोमीटर ज्यादा लंबा है।

बृहस्पति एक ठोस ग्रह नहीं है इसके ऊपरी वायुमंडल में अनेक घूर्णन गतियाँ है। इसके ध्रुवीय वायुमंडल का घूर्णन भूमध्यरेखीय वायुमंडल से 5 मिनट लंबा है। गतियों की तीन प्रणालियों को सापेक्षिक निशानी के रूप में प्रयोग किया गया है विशेषरूप से जब वायुमंडलीय लक्षणों का अभिलेख किया जाता है।

प्रणाली एक में 10० उत्तर से 10० दक्षिण अक्षांशों पर लागू 9 घंटे 50 मिनट 30.0 सेकेण्ड पर सबसे कम अवधि। प्रणाली दो में इसके उत्तर और दक्षिण के सभी अक्षांशों पर लागू घूर्णन अवधि 9 घंटे 55 मिनट 40.6 सेकेण्ड। तीसरी प्रणाली को पहले रेडियो खगोलविद ने परिभाषित किया था यह ग्रह के मेग्नेटोस्फेयर से मेल खाता है, यह अवधि बृहस्पति की अधिकारिक घूर्णन अवधि है।

बृहस्पति का अवलोकन :

बृहस्पति आसमान में चौथा सबसे चमकदार निकाय है किसी समय पर मंगल ग्रह बृहस्पति से उज्ज्वल दिखाई देता है। यह पृथ्वी के संदर्भ में बृहस्पति की स्थिति पर निर्भर करता है। यह दृश्य परिमाण में भिन्न हो सकते हैं जैसे निम्न विमुखता पर -2.9 जैसी तेज चमक से लेकर सूर्य के साथ संयोजन के दौरान -1.6 जैसा मंद। बृहस्पति का कोणीय व्यास भी इसी तरह 50.1 से 29.8 आर्क सेकेंडों तक बदलता है।

अनुकूल विमुखता तब पाई जाती है जब बृहस्पति अपसौर से होकर गुजर रहा होता है। यह स्थिति हर चक्कर में एक बार पाई जाती है जैसे बृहस्पति मार्च 2011 में अपसौर के पास पहुंचा, सितंबर 2010 में एक अनुकूल विमुखता थी। सूर्य के चारों तरफ बृहस्पति के साथ कक्षीय दौड़ में पृथ्वी हर 398.2 दिनों पर बृहस्पति को पार कर लेती है इस अवधि को एक संयुक्त काल कहा जाता है।

इस स्थिति में बृहस्पति पृष्ठभूमि सितारों के संदर्भ में प्रतिगामी गति अंतर्गत गुजरता दिखाई देता है। यही वजह है कि इस अवधि के लिए बृहस्पति रात्रि आसमान में पीछे जाता हुआ प्रतीत होता है एक पश्च गति का प्रदर्शन करता है। बृहस्पति की 12 वर्षीय कक्षीय अवधि राशिचक्र के दर्जन ज्योतिषीय चिन्हों से मेल खाती है और यह चिन्हों के ऐतिहासिक मूल हो सकते है।

यही वजह है हर बार जब बृहस्पति विमुखता तक पहुंचता है, यह पहले की तरफ लगभग 30० खिसक गया होता है जो एक राशि चक्र की चौडाई है। बृहस्पति की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से बाहर की तरफ है, बृहस्पति का स्थिति कोण जैसा पृथ्वी से देखा गया, कभी 11.5० से अधिक नहीं होता है। यही वजह है जब भूआधारित दूरबीन के माध्यम से इसे देखा जाता है, ग्रह हमेशा लगभग पूरी तरह से प्रदीप्त दिखाई देता है। सिर्फ बृहस्पति के लिए अंतरिक्ष यान मिशन के दौरान ही इस ग्रह का अर्द्ध चंद्राकर रूप प्राप्त किया गया।

बृहस्पति ग्रह का पूर्व दूरबीन अनुसंधान :

बृहस्पति ग्रह का प्रक्षेपण 7 वीं या 8 वीं शताब्दि ईपू के बेबिलोनीयन खगोलविदों से होता चला आ रहा है। चीनी खगोल विज्ञान इतिहासकार जि जेझोंग ने दावा किया है कि एक चीनी खगोलशास्त्री गैन डी ने बिना दृश्य साधनों की मदद के 362 ईपू में बृहस्पति के चंद्रमाओं में से एक की खोज की है।

अगर सही है तो यह गैलिलियो की खोज से लगभग दो सहस्त्राब्दियों पहले की बात होगी। अपनी दूसरी सदी की अल्मागेस्ट कृति में हेल्लेनिस्टिक खगोलविद क्लाडियस टोलेमस ने पृथ्वी के सापेक्ष बृहस्पति की गति की व्याख्या के लिए डेफेरेंटस और एपिसाइकल्स पर आधारित एक भुकेंद्रिय ग्रहीय मॉडल का निर्माण किया जिसने पृथ्वी के चारों तरफ इसकी कक्षीय अवधि 4332.38 या 11.86 सालों के रूप में दी।

499 में भारतीय गणित और खगोल विज्ञान के उत्तम युग से एक गणितज्ञ खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट ने भी बृहस्पति की कक्षीय अवधि का अनुमान 4332.2722 दिन या 11.86 सालों के रूप में लगाने के लिए एक भुकेंद्रिय मॉडल का इस्तेमाल किया था।

बृहस्पति ग्रह का भू-आधारित दूरदर्शी अनुसंधान :

सन् 1610 में गैलिलियो गैलिली ने एक दूरदर्शी का प्रयोग करके बृहस्पति के चार बड़े चंद्रमाओं – आयो, युरोपा, गैनिमीड और कैलीस्टो की खोज की यह गैलिलियाई चन्द्रमा के रूप में जाने जाते है और पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य चंद्रमाओं का पहला दूरदर्शीय अवलोकन माना जाता है। यह गैलिलियो की भी खगोलीय गति की एक प्रथम खोज थी जिसके केंद्र पर स्पष्ट रूप से पृथ्वी नहीं थी।

यह कोपर्निकस के ग्रहों की गति का सूर्य केंद्रीय सिद्धांत के पक्ष में एक प्रमुख बात थी, गैलिलियो के इस कोपर्निकस सिद्धांत के मुखर समर्थन ने उन्हें न्यायिक जाँच के भयावह घेरे में ला खड़ा किया। सन् 1660 के दौरान बृहस्पति पर धब्बों और रंगीन पट्टियों की खोज के लिए कैसिनी ने एक नई दूरबीन का उपयोग किया और ध्यान से देखा तो ग्रह चपटा दिखाई दिया।

वे ग्रह की घूर्णन अवधि का अनुमान लगाने में भी सक्षम थे। सन् 1690 में कैसिनी ने देखा कि वातावरण भिन्न-भिन्न घूर्णन के अधीन चलायमान है। विशाल लाल धब्बा बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्द्ध में एक प्रख्यात अंडाकार आकृति है इसे सन् 1664 में रॉबर्ट हुक द्वारा पहले देखा गया हो सकता है और सन् 1665 में गियोवन्नी कैसिनी द्वारा हालाँकि यह विवादस्पद है।

औषध विक्रेता हेनरिक स्च्वाबे ने सन् 1831 में विशाल लाल धब्बे के विस्तार को दिखाने के लिए सबसे पहले ज्ञात आरेखण प्रस्तुत किया। लाल धब्बा कथित तौर पर सन् 1878 में विशिष्ट बनने से पहले सन् 1665 और 1708 के मध्य कई मौकों पर दृष्टि से खो गया था। यह सन् 1883 और 20 वीं सदी के आरंभ में लुप्त होने के रूप में दर्ज हुआ था।

बृहस्पति ग्रह का रेडियो दूरदर्शी अनुसंधान :

सन् 1955 में बर्नार्ड बर्क और केनेथ फ्रेंकलिन ने बृहस्पति से आने वाली 22.2 मेगाहर्ट्ज रेडियो संकेतों की बौछारों का पता लगाया। बौछारों की यह अवधि ग्रह के घूर्णन से मेल खाई और वे इस जानकारी का इस्तेमाल कर घूर्णन दर को परिष्कृत करने में भी सक्षम थे।

बृहस्पति से आने वाली रेडियो बौछारें दो रूपों में पाई गई थी कई सेकेण्ड तक चलने वाली लंबी बौछारें और छोटी बौछारें जिसकी अवधि सेकेण्ड के 100 वें भाग से कम थी। वैज्ञानिकों ने पाया है कि बृहस्पति से प्रसारित रेडियो संकेतों के तीन रूप थे। पहला संकेत यह था कि डेकामीट्रिक रेडियो बौछारें बृहस्पति के घूर्णन के साथ बदलती है और बृहस्पति के चुंबकीय क्षेत्र के साथ आयो के संपर्क से प्रभावित हो रही है।

दूसरा संकेत यह था कि डेसीमीट्रिक रेडियो उत्सर्जन सन् 1959 में पहली बार फ्रैंक ड्रेक और हेन ह्वातुम द्वारा अवलोकित की गई। इस संकेत की उत्पत्ति बृहस्पति भूमध्य रेखा के इर्द-गिर्द की एक टॉरस आकार की पट्टी से हुई थी। यह संकेत बृहस्पति के चुंबकीय क्षेत्र में त्वरित इलेक्ट्रानों से साइक्लोट्रोन विकिरण की वजह से होता है। तीसरा संकेत यह था कि तापीय विकिरण बृहस्पति के वातावरण में गर्मी द्वारा उत्पादित होता है।

बृहस्पति ग्रह का अंवेषण :

सन् 1973 के बाद से कई स्वचालित अंतरिक्ष यानों ने बृहस्पति का दौरा किया है विशेष रूप से उल्लेखनीय पायोनियर 10 अंतरिक्ष यान है, बृहस्पति के इतना समीप पहुंचने वाला पहला अंतरिक्ष यान जो सौरमंडल के इस बड़े ग्रह के गुणों और तथ्यों की जानकारी वापस भेज सके।

सौरमंडल के अंदर अन्य ग्रहों के लिए उड़ान ऊर्जा की कीमत पर संपन्न होती है जो अंतरिक्ष यान के वेग में शुद्ध परिवर्तन, धक्का या डेल्टा-V के द्वारा वर्णित किया जाता है। पृथ्वी से बृहस्पति के लिए निम्न पृथ्वी कक्षा से होहमान्न स्थानांतरण कक्षा में प्रवेश के लिए एक 6.3 किलोमीटर/सेकेण्ड डेल्टा-V की आवश्यकता होती है।

तुलना के लिए निम्न पृथ्वी कक्षा पर पहुंचने के लिए 9.7 किलोमीटर/सेकेण्ड डेल्टा-V की आवश्यकता होगी। अच्छे भाग्य की वजह से बृहस्पति पहुंचने के लिए ग्रहीय उड़ानों की ऊर्जा की जरूरत को गुरुत्वाकर्षण की मदद से कम किया जा सकता है अन्यथा लंबी अवधि की उड़ान की कीमत काफी हो सकती है।

बृहस्पति ग्रह के लिए पहली उड़ान :

सन् 1973 के शुरू में अनेक अंतरिक्ष यानों ने ग्रहीय उड़ान की कुशलताओं का प्रदर्शन किया है जिसने उनको बृहस्पति के अवलोकन क्षेत्र के अंदर ला दिया। पायोनियर मिशन ने बृहस्पति के वायुमंडल और उनके चंद्रमाओं की पहली समीपी छवियों को प्राप्त किया।

उसने पाया कि ग्रह के पास का विकिरण क्षेत्र उम्मीद से कहीं अधिक शक्तिशाली था लेकिन दोनों अंतरिक्ष यान इस वातावरण में जीवित रहने में सफल रहे। इस अंतरिक्ष यान के प्रक्षेप पथ का उपयोग ग्रहीय प्रणाली के आकलन को बड़े पैमाने पर परिष्कृत करने के लिए किया गया।

ग्रह द्वारा रेडियो संकेतों को ढकने का परिणाम बृहस्पति के व्यास और ध्रुवीय स्पॉट राशि के बेहतर माप के रूप में हुआ। 6 साल बाद वॉयेजर मिशन से गैलिलियन चंद्रमाओं की समझ में बहुत सुधार हुआ और बृहस्पति के छल्लों की खोज हुई। उसने यह भी पुष्टि की कि विशाल लाल धब्बा प्रतिचक्रवाती था।

छवियों की तुलना से पता चला है कि पायोनियर मिशन के बाद लाल धब्बे का रंग बदल गया था और यह बदलाव नारंगी से गहरे भूरे रंग की तरफ था। आयनित परमाणुओं के टॉरस की खोज आयो के कक्षीय पथ के साथ-साथ हुई थी और चंद्रमाओं की अताहों पर जहाँ ज्वालामुखी पाए गए कुछ में फूटने की प्रक्रिया चल रही थी।

जैसे ही अंतरिक्ष यान ग्रह के पीछे से गुजरा रात्रि पक्ष के वातावरण से इसने बिजली की चमक अवलोकित की। बृहस्पति से मुठभेड़ के लिए अगला मिशन, यूलिसेस सौर यान ने सूर्य के चारों तरफ एक ध्रुवीय कक्षा प्राप्त करने के लिए उड़ान कलाबाजी का प्रदर्शन किया। इस गुजारे के दौरान अंतरिक्ष यान ने बृहस्पति के मेग्नेटोस्फेयर के अध्ध्यनों का संचालन किया। यूलिसेस के पास कैमरा नहीं होने से कोई छवि नहीं ली गई थी।

बृहस्पति ग्रह का गैलिलियो मिशन :

अब तक सिर्फ गैलिलियो ने बृहस्पति का चक्कर लगाया है जो 7 दिसंबर, 1995 को बृहस्पति के चारों तरफ की कक्षा में चला गया। इसने सात साल से भी ज्यादा इस ग्रह का चक्कर लगाया और सभी गैलिलियाई चंद्रमाओं और ऐमलथीया की बहुत-उड़ानों का वाहक बना।

इस अंतरिक्ष यान ने धूमकेतु सुमेकर लेवी 9 की टक्कर का भी साक्ष्य दिया जब यह सन् 1994 में बृहस्पति पर पहुंचा और घटना के लिए एक अद्वितीय लाभप्रद अवसर दिया। उच्च प्राप्ति रेडियो प्रसारण एंटीना की असफल तैनाती की वजह से इसकी मूल डिजाइन क्षमता सीमित थी हालाँकि बृहस्पति प्रणाली के विषय में गैलिलियो से मिली जानकारी व्यापक थी।

एक वायुमंडलीय प्रविष्ठी यान जुलाई 1995 में अंतरिक्ष यान से छोड़ा गया था जिसने 7 दिसंबर को ग्रह के वायुमंडल में प्रवेश किया था। इसने पैराशूट से वायुमंडल की 150 किलोमीटर की यात्रा की, 57.6 मिनटों के लिए आंकड़े इकट्ठे किए और उस दबाव के द्वारा कुचल दिया गया जिसके अधीन वह उस समय था।

उसके बाद वह पिघल गया होगा और संभवतः वाष्पीकृत हो गया होगा। गैलिलियो यान ने भी दुर्भाग्य से इसी प्रकार के इससे भी ज्यादा द्रुत परिवर्तन का अनुभव किया जब 21 सितंबर, 2003 को इसे जानबूझ कर 50 किलोमीटर/सेकेण्ड से ज्यादा वेग से इस ग्रह की तरफ चलाया गया यह आत्मघाती कदम एक उपग्रह को भविष्य की किसी भी संभावित दुर्घटना से और दूषित होने से बचाने के लिए उठाया गया था और यह उपग्रह है, युरोपा-एक चाँद जिसमें जीवन को शरण देने की संभावना है ऐसी धारणा रही है।

भविष्य के प्रोब और रद्द मिशन :

नासा के पास हाल ही में एक मिशन के अंतर्गत एक ध्रुवीय कक्षा से बृहस्पति का विस्तार में अध्धयन चल रहा है। जूनो नाम का यह अंतरिक्ष यान 2011 में प्रक्षेपित हुआ था और 2016 के अंत तक यथास्थान पहुंच जाएगा। युरोपा बृहस्पति प्रणाली मिशन, बृहस्पति और उनके चंद्रमाओं के अंवेषण के लिए नासा/इसा का संयुक्त प्रस्ताव है।

फरवरी 2009 में यह घोषणा की गई थी कि इसा/नासा ने इस मिशन को टाइटन शनि प्रणाली मिशन से आगे प्राथमिकता दी। इस मिशन के लिए इसा का योगदान अभी भी इसा की अन्य परियोजनाओं के साथ वित्तीय खींचतान से जूझ रहा है। इसकी प्रक्षेपण दिनांक 2020 के आसपास होगी। युरोपा बृहस्पति प्रणाली मिशन, नासा के नेतृत्व वाली बृहस्पति युरोपा परिक्रमा यान और इसा के नेतृत्व वाली बृहस्पति गैनिमीड परिक्रमा यान दोनों को शामिल करता है।

बृहस्पति के चंद्रमाओं युरोपा, गेनीमेड और कैलिस्टो पर उपसतह तरल महासागरों की संभावना की वजह से वहां के बर्फीले चंद्रमाओं के विस्तृत अध्धयन में विशेष रूचि रही है। वित्तीय कठिनाईयों ने प्रगति को विलंबित कर दिया है। नासा के जीमो को 2005 में रद्द कर दिया गया था। एक यूरोपीयन जोवियन युरोपा परिक्रमा मिशन का भी अध्धयन किया गया था। इस अभियान का स्थान युरोपा बृहस्पति प्रणाली मिशन ने ले लिया था।

बृहस्पति के उपग्रह :

बृहस्पति ग्रह के 66 प्राकृतिक उपग्रह है इनमें से 10 किलोमीटर से कम व्यास के 50 उपग्रह है और इन सभी को सन् 1975 के बाद खोजा गया था। चार सबसे बड़े चंद्रमा आयो, युरोपा, गैनिमीड और कैलिस्टो, गैलिलीयन चंद्रमा के नाम से जाने जाते हैं।

गैलिलीयन चंद्रमा :

सौरमंडल के कुछ बड़े उपग्रहों, लो, युरोपा और गैनिमीड की कक्षाएं एक विशिष्ट स्वरूप बनाते है जिसे लाप्लास रेजोनेंस के नाम से जाना जाता है। लो उपग्रह बृहस्पति के चार चक्कर लगाने में जितना समय लेता है ठीक उतने ही समय में युरोपा पूरे दो चक्कर और गैनिमीड पूरा एक चक्कर लगाता है।

यह रेजोनेंस, तीन बड़े चंद्रमाओं के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव की वजह से बनता है जो उनकी कक्षाओं के आकार को विस्तृत कर अंडाकार कर देते है क्योंकि प्रत्येक चाँद अपने हर एक पूरे चक्कर में पड़ोसी चाँद से एक ही बिंदु पर अतिरिक्त खिचाव प्राप्त करता है। दूसरी तरफ बृहस्पति से ज्वारीय बल, कक्षाओं को वृत्तिय बनाने की कोशिश करता है।

चंद्रमाओं का वर्गीकरण :

वॉयजर मिशन की खोजों से पूर्व बृहस्पति के चंद्रमा अपने कक्षीय तत्वों की समानता के आधार पर बड़े ही सलीके के साथ 4 समूहों में व्यवस्थित किए गए थे। बाद में नए छोटे बाहरी चंद्रमाओं की बड़ी संख्या ने तस्वीर जटिल कर दी। अब मुख्य 6 समूह माने जाते है हालाँकि उनमे से कुछ दूसरों से अलग है। मूल उपविभाजन, 8 अंदरूनी नियमित चंद्रमाओं को समूह में बांटना है जिनकी कक्षाएं बृहस्पति के संग बने हुए लगते है।

शेष चंद्रमा अंडाकार और झुकी कक्षाओं के संग अज्ञात संख्या में छोटे-छोटे अनियमित चंद्रमाओं से मिलकर बने है। यह हडप लिए गए क्षुद्रग्रहों या हडप लिए गए क्षुद्रग्रहों के खंड माने गए है। अनियमित चंद्रमा जिस समूह में शामिल है समान कक्षीय गुण साझा करते है इस प्रकार वे एक ही मूल की उपज हो सकते हैं।

सौर प्रणाली के साथ सहभागिता :

सूर्य के साथ बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव ने सौरमंडल को आकार देने में बहुत सहायता की है, ज्यादातर ग्रहों की कक्षाएं सूर्य के भूमध्यरेखीय तल की जगह पर बृहस्पति के कक्षीय तल के समीप स्थित है। क्षुद्रग्रह बेल्ट में किर्कवुड अंतराल अधिकांशतः बृहस्पति के कारण है और यह ग्रह अंदरूनी सौरमंडलीय इतिहास के चन्द्रप्रलय के लिए जिम्मेदार हो सकता है।

अपने चंद्रमाओं के साथ बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उन कई क्षुद्रग्रहों को भी नियंत्रित करता है जो लांग्रगियन बिंदुओं के क्षेत्रों में बसे है और अपनी-अपनी कक्षाओं में सूर्य के आस-पास बृहस्पति का अनुसरण करते है। ये ट्रोजन क्षुद्रग्रह के रूप में जाने जाते हैं और ग्रीक कैम्प और ट्रोजन कैम्प में विभाजित है।

इनमें से पहला 588 एचिलेस को सन् 1906 में मैक्स वोल्फ द्वारा खोजा गया उसके बाद दो हजार से भी ज्यादा और खोजे जा चुके हैं जिनमें से सबसे बड़ा 624 हेक्टोर है। बृहस्पति परिवार के ज्यादातर लघु अवधि धूमकेतु उन धूमकेतुओं के रूप में परिभाषित है जिनके अर्ध्य मुख्य अक्ष बृहस्पति के अक्षों से छोटे है।

बृहस्पति परिवार के धूमकेतु नेप्चून कक्षा के पार कुइपर बेल्ट में निर्मित माने जाते हैं। बृहस्पति ग्रह के साथ समीपी मुठभेड़ों के दौरान उनकी कक्षाएं एक छोटी अवधि में तब्दील कर दी गई और बाद में सूर्य और बृहस्पति के साथ नियमित गुरुत्वाकर्षण प्रभाव द्वारा वृत्ताकार हो गई।

टक्कर :

बृहस्पति ग्रह को सौरमंडल का वेक्यूम क्लीनर कहा जाता है, विशाल गुरुत्वीय कूप और अंदरूनी सौरमंडल के पास स्थित होने की वजह से यह सौरमंडलीय ग्रहों के सबसे सतत भीषण टक्करों को झेलता है। सन् 1997 के ऐतिहासिक खगोलीय आरेखण के एक सर्वेक्षण ने सुझाव दिया था कि हो सकता है सन् 1690 में खगोल विज्ञानी कैसिनी ने एक टक्कर का निशान दर्ज किया हो।

सर्वेक्षण की गई 8 दूसरे उम्मीदवारों की टिप्पणियाँ एक टक्कर के होने की संभावना बहुत कम है या न के बराबर है। 13 जुलाई, 1994 से लेकर 22 जुलाई, 1994 की समयावधि के दौरान, धूमकेतु सुमेकर-लेवी 9 के 20 से ज्यादा टुकड़े बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्द्ध से टकराए, सौरमंडल के दो निकायों के मध्य की इस टक्कर ने पहला प्रत्यक्ष अवलोकन उपलब्ध कराया था।

इस टक्कर ने बृहस्पति के वायुमंडल की संरचना पर उपयोगी आंकड़े प्रदान किए। 19 जुलाई, 2009 में प्रणाली 2 में लगभग 216 डिग्री देशांतर पर इस टक्कर स्थल को खोज लिया गया था। यह टक्कर अपने पीछे बृहस्पति के वायुमंडल में एक कला धब्बा छोड़ गया जो आकार में ओवल बीए के समान है।

इन्फ्रारेड प्रेक्षण ने जहाँ पर यह टक्कर हुई एक उजले धब्बे को दिखाया है जिसका अर्थ है इस टक्कर ने बृहस्पति के दक्षिण ध्रुव के नजदीक के क्षेत्र में निचले वायुमंडल को गर्म कर दिया। टक्कर की दूसरी घटना जो पूर्व प्रेक्षित टक्करों से छोटी है 3 जून, 2010 को शौकिया खगोल विज्ञानी एंथोनी वेसलें द्वारा आस्ट्रेलिया में पाई गई और बाद में फिलीपिंस में एक और शौकिया खगोल विज्ञानी द्वारा इस खोज को वीडियो पर कैद कर लिया गया है।

बृहस्पति पर जीवन की संभावना :

सन् 1953 में मिलर-उरे प्रयोग ने प्रदर्शन किया कि आद्य पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित बिजली और रासायनिक यौगिकों का एक संयोजन ऐसे कार्बनिक यौगिक बना सकते है जो जीवन रूपी ईमारत की ईंटों की तरह काम आ सकते हैं। ऐसा ही कृत्रिम वातावरण जिसमें पानी, मीथेन, अमोनिया और आणविक हाइड्रोजन सम्मिलित हो, सभी अणु अभी भी बृहस्पति के वातावरण में है।

बृहस्पति के वायुमंडल में एक शक्तिशाली ऊर्ध्वाधर वायु परिसंचरण प्रणाली है जो इन यौगिकों को वहन करके निचले क्षेत्रों में ले जाएगा। वायुमंडल के आंतरिक भाग के अंदर का उच्च तापमान इन रसायनों को तोड़ देगा जो पृथ्वी-सदृश्य जीवन के गठन में बाधा पहुंचाएगा। यह माना जा रहा है कि पृथ्वी के समान बृहस्पति पर जीवन की ज्यादा संभावना नहीं है वहां के वायुमंडल में पानी की सिर्फ छोटी सी मात्रा है और बृहस्पति की आंतरिक गहराई में संभावित ठोस सतह असाधारण दबाव के अधीन होगी।

सन् 1976 में वॉयजर मिशन से पूर्व यह धारणा थी कि अमोनिया या जल आधारित जीवन बृहस्पति के ऊपरी वायुमंडल में विकसित हो सकता है। यह परिकल्पना स्थलीय समुद्र की पारिस्थितिकी पर आधारित है जिसके अनुसार शीर्ष स्तर पर सरल संश्लेषक प्लवक है निचले स्तर पर यह प्लवक मछली का भोजन है और समुद्री शिकारी जो मछली का शिकार करते हैं। बृहस्पति ग्रह के चंद्रमाओं में से कुछ चंद्रमाओं पर भूमिगत महासागरों की उपस्थिति ने जीवन की ज्यादा संभावना होने की अटकलों को जन्म दिया है।

पौराणिकी :

बृहस्पति ग्रह को प्राचीन काल से ही जान लिया गया था। यह रात को आसमान में आँखों से देखा जा सकता है और कभी-कभी दिन के समय भी देख जा सकता है जब सूरज नीचे हो। बेबीलोनियन से यह निकाय उनके देवता मर्डक का प्रतिनिधि है। वे क्रांतिवृत्त के साथ इस ग्रह की लगभग 12 वर्षीय कक्षीय अवधि का प्रयोग उनकी राशि चक्र के नक्षत्रों को परिभाषित करने करते थे।

रोमन लोगों ने इसका नाम जुपिटर रखा जो रोमन पौराणिक कथाओं के प्रमुख देवता है जिसका नाम आद्य-भारत-यूरोपीय संबोधन परिसर से आता है। जोवियन बृहस्पति का विशेषणीय रूप है और इसका प्राचीन विशेषणीय रूप जोवियन है जो मध्य युग में ज्योतिषियों द्वारा नियोजित था जिसका अर्थ खुशी या आनंदित भाव से आया है जिसे बृहस्पति के ज्योतिषीय प्रभाव के लिए उत्तरदायी ठहराया गया है।

बृहस्पति की विशेष जानकारी :

बृहस्पति ग्रह का रंग – पीला, दिन – गुरुवार और अंक – 3 है। बृहस्पति ग्रह की दिशा – पूर्वोत्तर, राशिस्वामी – धनु और मीन और नक्षत्र स्वामी – पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद है। बृहस्पति ग्रह का रत्न – पुखराज, धातु – सोना, देव – ब्रह्मा है। बृहस्पति ग्रह की उच्च राशि – कर्क है और नीच राशि मकर है।

बृहस्पति ग्रह का मूल त्रिकोण – धनु, महादशा समय – 16 साल और बीज मंत्र – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नमः है। बृहस्पति ग्रह बैंकिंग, न्यायालय, संपत्ति, संतान, एश्वर्य, राजनीति, वकालत, पीला रंग, वेद, वर्ण, ज्ञानी, गुरु, विद्या, पुत्र, तीर्थयात्रा, पौत्र, बुद्धि, धार्मिक कार्य, न्यायधीश व विवाह आदि का कारकत्व है।

शुभ फल या लक्षण :

जिनकी जन्मकुंडली में बृहस्पति शुभ स्थिति में होता है ऐसे व्यक्ति विद्वान्, शासक, मंत्री, शासनप्रिय, आचार्य, न्यायधीश, अर्थशास्त्री, अध्यापक, लेखक, कवि, प्रशासनिक अधिकारी, धार्मिक पुरुष या किसी अन्य उच्च पद पर आसीन होते हैं। इस ग्रह से प्रभावित व्यक्ति शारीरिक तौर पर मोटे तथा लंबे कद के हो सकते है। इनकी आँखों में चमक और चेहरे पर तेज स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ये बहुत ही परिश्रमी, सत्य बोलने वाले, ज्ञानी, अपने विचारों से प्रभावित करने वाले और धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।

अशुभ फल और लक्षण :

जन्मकुंडली में विभिन्न परिथितियाँ ऐसी हो सकती हैं जिसमें बृहस्पति ग्रह नीच का अशुभ फल देने वाला हो जाता है जैसे गुरु का अस्त होना, शत्रु राशि में होना, क्रूर भावों या 6, 8, 12 भावों में होना, पाप गृह के साथ आदि हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में जातक को कुछ अशुभ फल देखने पड़ सकते हैं जैसे – मोटापा, पाचन में गडबडी, गुर्दे की बीमारी, सोना गुम होना या चोरी होना, हर्निया, चर्बी की वृद्धि, मानसिक तनाव, अति आशावादी, बच्चों से चिंता और दूसरों पर अधिक भरोसे से हानि आदि हो सकते हैं ।

बृहस्पति के विषय में रोचक तथ्य :

रोमन लोगों ने अपने रोमन भगवान के बाद इस ग्रह बृहस्पति नाम दिया था। प्रथ्वी से अधिक चमकने वाले ग्रहों में बृहस्पति का तीसरा स्थान है इससे पहले चन्द्रमा और शुक्र ग्रह आते हैं। बृहस्पति मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। बृहस्पति भी भारी तत्वों की एक चट्टानी कोर है। बृहस्पति ग्रह के चंद्रमाओं की 64 कक्षा है।

चार सबसे बड़े चाँद जिन्हें गैलीलियन चंद्रमा भी कहा जाता है वे सन् 1610 में गैलिलियो गैलिली द्वारा खोजे गए थे। बृहस्पति के सबसे बड़े चंद्रमा को गेनीमेड कहा जाता है और इसका व्यास बुध ग्रह के व्यास से भी ज्यादा है। बृहस्पति ग्रह पर विशाल लाल जगह पर एक लगातार तूफान पृथ्वी से भी बड़ा है।

यह तूफान सन् 1655 में अस्तित्व में आया था जो अब तक का सबसे लंबा तूफान माना जाता है। बृहस्पति की रिंग्स धूल से बनी हुई हैं जो शनि ग्रह की आइस रिंग्स की तरह दिखाई देती हैं। बृहस्पति ग्रह से सूर्य की औसत दुरी लगभग 778 लाख किलोमीटर है जो पृथ्वी से सूर्य के लगभग 5.2 गुना दूरी के बराबर है। बृहस्पति ग्रह का रोटेशन सौर प्रणाली में सभी ग्रहों की सबसे तेज है।

यह कम-से-कम 10 घंटे में एक पूर्ण रोटेशन पूरा करती है। बृहस्पति सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाने में पृथ्वी के 11.86 साल लगाती है। बृहस्पति ग्रह के ऊपरी वायुमंडल के बादलों को बेल्ट और जोनों में बांटा गया है। वे मुख्य रूप से अमोनिया क्रिस्टल, सल्फर और दो यौगिक के मिश्रण से बने रहे हैं। बृहस्पति की आंतरिक सतह रॉक, धातु और हाईड्रोजन यौगिकों से बनी हुई है।

आठ अंतरिक्ष यानों ने बृहस्पति का दौरा किया है। बृहस्पति ग्रह को सौर मंडल का वकुएम क्लीनर भी कहा जाता है क्योंकि यह पृथ्वी को विनाशकारी हमलों से बचाता है जिसकी वजह से हम सुरक्षित जीवन जी रहे हैं। बृहस्पति ग्रह हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा और सबसे भारी ग्रह है।

बृहस्पति ग्रह को सौरमंडल का रक्षा कवच भी कहा जाता है हालाँकि गैस के बादलों से ढके इस ग्रह के विषय में इंसान की समझ कुछ ज्यादा नहीं रही है। बृहस्पति ग्रह का आकार 1300 पृथ्वियों के बराबर है जो बृहस्पति ग्रह का वजन सौर मंडल के सारे ग्रहों के कुल वजन से ढाई गुना अधिक है।

बृहस्पति ग्रह पर दिन बाकी सभी ग्रहों से छोटा होता है बृहस्पति ग्रह 9 घंटे 55 मिनट में अपनी धुरी के समक्ष एक पूरा चक्कर करता है। बृहस्पति ग्रह की कोई भी जमीन नहीं है यह पूरी तरह से गैस से बना है। बृहस्पति ग्रह की कोर यानि इसके केंद्रीय हिस्से के विषय में कहा जाता है कि यह चट्टानों से बना है।

बृहस्पति ग्रह सबसे पुराने ग्रहों में से एक है जिसके माध्यम से हम पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में पता लगा सकते हैं। बृहस्पति ग्रह की सतह का औसतन तापमान 180 डिग्री सेल्सियस है। आज तक बृहस्पति ग्रह पर 9 यान भेजे जा चुके हैं – सन् 1973 में पायोनीयर 10 भेजा गया, सन् 1974 में पायनीयर 11, सन् 1979 में वॉयजर 1 और 2, सन् 1992 में युलेसिस, सन् 1995 में गैलिलियो, सन् 2000 में कैसिनी, सन् 2007 में न्यू होराइजन्स, 5 अगस्त, 2011 में जूनो आदि सभी यान बृहस्पति ग्रह के पास से होकर गुजरे थे।

8 दिसंबर, 1995 में बृहस्पति ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला पहला यान गैलिलियो था जो 2003 तक बृहस्पति ग्रह की कक्षा के चक्कर लगता रहा। आने वाले समय में पहली बार नासा का यान जूनो बृहस्पति ग्रह को बहुत ही समीप से देखेगा। जूनो यान बृहस्पति ग्रह के बादलों के आर-पार देखने में सक्षम होगा।

जूनो यान को नासा के द्वारा 5 अगस्त, 2011 को अंतरिक्ष में छोड़ा गया। लगभग आधा सफर करने के बाद अक्टूबर 2013 में जूनो नाम का ये अंतरिक्ष यान पृथ्वी की ओर लौट आया था यह किसी भी तकनीकी खराबी की वजह से नहीं बल्कि वैज्ञानिक ढंग से इसकी गति बढ़ाने का तरीका था।

जब जूनो पृथ्वी की ओर लौट रहा था तो पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति ने जूनो को बड़ी तेजी से बृहस्पति ग्रह की ओर धकेल दिया ऐसा करने से जूनो की स्पीड 14 हजार प्रति किलोमीटर के हिसाब से बढ़ गई। जूनो की औसतन रफ्तार 38000 किलोमीटर प्रति घंटा है लेकिन बृहस्पति ग्रह की कक्षा में पहुंचने पर इसकी गति 2 लाख 66 हजार प्रति किलोमीटर घनता हो जाएगी। लगभग 35 मिनट तक अपने इंजन को जलाने के बाद जूनो अपनी गति को कम करेगा।

गति कम होने के बाद जूनो बृहस्पति ग्रह की कक्षा को बाँट लेगा और लगभग 20 महीनों तक जूनो बृहस्पति के 37 चक्कर लगाएगा। जूनो यूनान की देवी का नाम है जिसे बृहस्पति की पत्नी माना जाता है। ग्रीक कथाओं के अनुसार बृहस्पति नाम का देवता खुद को बादलों से ढक कर रखता है और बृहस्पति की पत्नी जनों की बादलों के आर-पार देख सकती है।

बृहस्पति ग्रह का वायुमंडल बादलों की परतों और पेटियों से बना है। हम जो बृहस्पति के चित्र देख पाते हैं वो बृहस्पति के ऊपर स्थित इन बादलों की परतों और पेटियों के ही होते हैं। यह बादल विभिन्न तत्वों की रासायनिक प्रतिक्रियाओं की वजह से रंग-बिरंगे नजर आते हैं।

बृहस्पति के बादलों के नीचे इसकी सतह ठोस नहीं गैसीय होती है और इसका गैसीय घनत्व गहराई के साथ बढ़ता जाता है। बृहस्पति ग्रह पर पिछले 350 सालों से एक बवंडर चल रहा है जो लाल बादलों से बना हुआ है। यह बवंडर इतना बड़ा है कि इसमें तीन पृथ्वियां समा सकती हैं।

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