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Poem On Mother In Hindi-माँ पर 50+ कवितायें

Mother’s Day Poem In Hindi :

1. माँ से रिश्ता ऐसा बनाया जाए,
जिसको निगाहों में बिठाया जाए,
रहे उसका मेरा रिश्ता कुछ ऐसे कि,
वो अगर उदास हो तो हमसे भी
मुस्कुराया न जाए।


2. मेरी प्यारी माँ तू कितनी प्यारी है,
जग है अंधियारा तू उजियारी है,
शहद से मीठी हैं तेरी बातें,
आशीष तेरा जैसे हो बरसातें,
डांट तेरी है मिर्ची से तीखी,
तुझ बिन जिंदगी है कुछ फीकी,
तेरी आँखों में छलकते प्यार के आंसू,
अब मैं तुझसे मिलने को भी तरसूं,
माँ होती है भोरी भारी,
सबसे सुंदर प्यारी-प्यारी।


3. जन्म दात्री,
ममता की पवित्र मूर्ति,
रक्त कणों से अभिसिंचित कर,
नव पुष्प खिलाती,
स्नेह निर्झर झरता,
माँ की मृदु लोरी से,
हर पल अंक से चिपटाए,
ऊर्जा भर्ती प्राणों में,
विकसित होती पंखुडियां,
ममता की छावो में,
सब कुछ न्यौछावर,
उस ममता की वेदी पर,
जिसके आंचल की साया में,
हर सुख का सागर।


4. मेरे सर्वस्व की पहचान,
अपने आंचल की दे छांव,
ममता की वो लोरी गाती,
मेरे सपनों को सहलाती,
गाती रहती मुस्कुराते जो,
वो है मेरी माँ।
प्यार समेटे सीने में जो,
सागर सारा अश्कों में जो,
हर आहट पर मुड़ आती जो,
वो है मेरी माँ।
दुःख को मेरे समेट जाती,
सुख की खुशबू बिखेर जाती,
ममता का रस बरसती जो,
वो है मेरी माँ।


5. माँ आँखों से ओझल होती,
आँखें ढूंढा करती रोती।
वो आँखों में स्वप्न संजोती,
हर दम नींद में जगती सोती।
वो मेरी आँखों की ज्योति,
मैं उसकी आँखों का मोती।
कितने आंचल रोज भिगोती,
वो फिर भी न धीरज खोती।
कहता घर मैं हूँ इकलौती,
दादी की मैं पहली पोती।
माँ की गोदी स्वर्ग मनौती,
क्या होता जो माँ न होती।
नहीं जरा भी हुई कटौती,
गंगा बनकर भरी कठौती।
बड़ी हुई मैं हंसती-रोती,
आँख दिखाती जो हद खोती।
शब्द नहीं माँ कैसी होती,
माँ तो बस माँ जैसी होती।
आज जो हूँ वो कभी न होती,
मेरे संग जो माँ न होती।


6. शख्शियत, ए ‘लख्ते-जिगर’, कहला न सका।
जन्नत.. के धनी पैर.. कभी सहला न सका।
दूध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर,
मैं निक्कमा, कभी एक गिलास पानी पिला न सका।
बुढ़ापे का सहारा.. हूँ ‘अहसास’दिला न सका,
पेट पर सुलाने वाली को ‘मखमल’ पर सुला न सका।
वो ‘भूखी’, सो गई ‘बहु’, के ‘डर’ से एकबार मांगकर,
मैं सुकून.. के ‘दो’, निवाले उसे खिला न सका।
नजरें उन बूढी, आँखों.. से कभी मिला न सका।
वो दर्द, शती रही मैं खटिया पर तिलमिला न सका।
जो हर रोज ममता, के रंग पहनाती रही मुझे,
उसे दीवाली पर दो जोड़े, कपड़े सिला न सका।
बिमार बिस्तर से उसे शिफा, दिला न सका।
खर्च के डर से उसे बड़े अस्पताल, ले जा न सका।
माँ के बेटा कहकर दम, तौड़ने बाद से अब तक सोच रहा हूँ,
दवाई, इतनी भी महंगी.. न थी कि मैं ला न सका।


7. तेरे पैरों के नीचे है जन्नत मेरी,
उम्र भर सर पे साया तेरा चाहिए,
प्यारी माँ मुझ को तेरी दुआ चाहिए,
तेरे आंचल की ठंडी हवा चाहिए।


8. माँ, माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास है,
माँ, माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है।
माँ, माँ मरुस्थल में नदी या मीठा सा झरना है।
माँ, माँ रोते हुए बच्चों का खुशनुमा पलना है,
माँ,माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है।
माँ, माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है।
माँ, माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ, माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है।
माँ, माँ झुलसते हुए दिलों में कोयल की बोली है,
माँ, माँ मेंहदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है।
माँ, माँ कलम है, दवात है, स्याही है,
माँ, माँ परमात्मा की स्वंय एक गवाही है।
माँ, माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ, माँ फूंक से ठंडा किया हुआ कलेवा है।
माँ, माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
माँ, माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है।
माँ, माँ चूड़ी वाले हाथों के मजबूत कंधों का नाम है,
माँ, माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है।
माँ, माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ, माँ बच्चों की चोट पर सिसकी है।
माँ, माँ चूल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ, माँ जिंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है।
माँ, माँ पृथ्वी है, जगत है, धुरी है,
माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है।
तो माँ की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नहीं है…
… और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है।
माँ का महत्व दुनिया में कम नहीं हो सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता।


9. निर्भिक होकर उड़ चल अपनी डगर को,
अंबर सा आंचल लिए, तुम्हारी ” माँ ” है।
रँज-ओ-गम के बादल भी काफूर हो जाएंगे,
आशियाने में पास तुम्हारे, तुम्हारी ” माँ ” है।
किसकी तलाश में भटक रहा है मदार-मदार,
काशी क्या, हरम क्या, बस तुम्हारी ” माँ ” है।
ममता की गहराई से हार गया समंदर भी,
देख तेरी मुस्कान, जी रही तुम्हारी ” माँ ” है।
तेरे कदमों की आहट से बढ़ जाएंगी धडकनें,
जाने कब से इंतजार में बैठी तुम्हारी ” माँ ” है।
कवियों की करतूतों से, भ्रमित न हो तू,
मु-अत्तर गुल्सिताँ सिर्फ तुम्हारी ” माँ ” है।
उपमाओं से न बदल शख्सियत ऐ ‘कवि’,
उसे ” माँ ” ही रहने दे, वो तुम्हारी ” माँ ” है।


10. हमारे हर मर्ज की दवा होती है माँ,
कभी डांटती है हमें, तो कभी गले लगा लेती है माँ,
हमारी आँखों के आंसू, अपनी आँखों में समा लेती है माँ,
अपने होठों की हंसी हम पर लुटा देती है माँ,
हमरी खुशियों में शामिल होकर, अपने गम भुला देती है माँ,
जब भी कभी कठोर लगे, तो हमें तुरंत याद आती है माँ,
दुनिया की तपिश में, हमें आंचल की शीतल छाया देती है माँ,
खुद चाहे कितनी थकी हो, हमें देखकर अपनी थकान भूल जाती है माँ,
प्यार भरे हाथों से, हमेशा हमारी थकान मिटाती है माँ,
बात जब भी हो लजीज खाने की, तो हमें याद आती है माँ,
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ,
लब्जों में जिसे बयाँ नहीं किया जा सके ऐसी होती है माँ,
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाते हैं।


11. मैं अपने छोटे मुख कैसे करूं तेरा गुणगान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान।
माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया,
ठुमक-ठुमक आंगन में चलकर सबका ह्रदय जुड़ाया,
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान।
दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई,
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई,
सारे ब्रजमंडल में गूंजी थी वंशी की तान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान।
तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई,
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई,
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान।
कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी,
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी,
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान।
‘विकल’ न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी,
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुःख में महतारी,
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान।


12. हजारों दुखड़े सहती है माँ, फिर भी कुछ न कहती है माँ।
हमारा बीटा फले और फूले, यही तो मंतर पढ़ती है माँ।
हमारे कपड़े, कलम और कॉपी, बड़े जतन से रखती है माँ।
बना रहे घर बंटे न आंगन, इसी से सबकी सहती है माँ।
रहे सलमत चिराग घर का, यही दुआ बीएस करती है माँ।
बढ़े उदासी मन में जब-जब, बहुत याद में रहती है माँ।
नजर का काँटा कहते हैं सब, जिगर का टुकड़ा कहती है माँ।
मनोज मेरे ह्रदय में हरदम, ईश्वर जैसी रहती है माँ।

13. क्या सीरत, क्या सूरत थी,
माँ ममता की मूरत थी।
पांव छुए और काम बने,
अम्मा एक महूरत थी।
बस्ती भर के दुःख सुख में,
एक अहम जरूरत थी।
सच कहते हैं माँ हमको,
तेरी बहुत जरूरत थी।


14. माँ मैं फिर जीना चाहता हूँ, तुम्हारा प्यारा बच्चा बनकर।
माँ मैं फिर सोना चाहता हूँ, तुम्हारी लोरी सुनकर।
माँ मैं फिर दुनिया की तपिश का सामना करना चाहता हूँ, तुम्हारे आंचल की छाया पाकर।
माँ मैं फिर अपनी सारी चिंताएं भूल जाना चाहता हूँ, तुम्हारी गोद में सिर रखकर।
माँ मैं फिर अपनी भूख मिटाना चाहता हूँ, तुम्हारे हाथों की सुखी रोटी खाकर।
माँ मैं फिर चलना चाहता हूँ, तुम्हारी ऊँगली पकड़कर।
माँ मैं फिर जागना चाहता हूँ, तुम्हारे कदमों की आहट पाकर।
माँ मैं फिर निर्भीक होना चाहता हूँ, तुम्हारा साथ पाकर।
माँ मैं फिर सुखी होना चाहता हूँ, तुम्हारी दुआएं पाकर।
माँ मैं फिर अपनी गलतियाँ सुधार चाहता हूँ, तुम्हारी चपत पाकर।
माँ मैं फिर संवरना चाहता हूँ, तुम्हारा स्नेह पाकर।
क्योंकि माँ मैंने तुम्हारे बिना खुद को अधूरा पाया है।
मैंने तुम्हारी कमी महसूस की है।


15. साल के बाद,
आया है यह दिन,
करने लगे हैं सब याद,
पल छिन,
तुम न भूली एक भी चोट या खुशी,
न तुमने भुलाया,
मेरा कोई जन्मदिन,
और मैं,
जो तुम्हारी परछाई हूँ,
वक्त की चाल-
रोजगार की ढाल,
सब बना लिए मैंने औजार,
पर माँ!
नासमझ जानकर,
माफ करना,
करती हूँ तुमको प्यार,
मैं हर पल,
खामोशी तंहाई में,
अर्पण किए,
मैंने अपनी श्रद्धा के फूल तुमको,
जानती हूँ,
मिले हैं वो तुमको,
क्योंकि,
देखी है मैंने तुम्हारी निगाह,
प्यार गौरव से भरी मुझ पर,
जब भी मैं तुम्हारे बताए,
उसूलों पर चलती हूँ चुपचाप,
माँ!
मुझमें इतनी शक्ति भर देना,
गौरव से सर उठा रहे तुम्हारा,
कर जाऊं ऐसा कुछ जीवन में,
बन जाऊं,
हर माँ की आँख का सितारा,
आज मदर्स डे के दिन,
‘अर्चना’ कर रही हूँ मैं तुम्हारी,
श्रद्धा, गौरव और विश्वास के चंद फूल लिए।


16. चिंतन दर्शन जीवन सर्जन,
रूह नजर पर छाई अम्मा,
सारे घर का शोर शराबा,
सूनापन तनहाई अम्मा।
उसने खुद को खोकर मुझमें,
एक नया आकार लिया है,
धरती अंबर आग हवा जल,
जैसी ही सच्चाई अम्मा।
सरे रिश्ते-जेठ दुपहरी,
गर्म हवा आतिश अंगारे,
झरना, दरिया, झील, समंदर,
भीनी-सी पुरवाई अम्मा।
घर में झीने रिश्ते मैंने,
लाखों बार उघडते देते,
चुपके-चुपके कर देती थी,
जाने कब तुरपाई अम्मा।
बाबू जी गुजरे, आपस में-
सब चीजें तकसीम हुई तब-
मैं घर में सबसे छोटा था
मेरे हिस्से आई अम्मा।


17. मेरी ही यादों में खोई,
अक्सर तुम पागल होती हो,
माँ तुम गंगाजल होती हो।
जीवन भर दुःख के पहाड़ पर,
तुम पीती आंसू के सागर,
फिर भी महकाती फूलों सा,
मन का सूना संवत्सर,
जब-जब हम लय गति से भटकें,
तब-तब तुम मादल होती हो।
व्रत, उत्सव, मेले की गणना,
कभी न तुम भूला करती हो,
संबंधों की डोर पकड़कर,
आजीवन झूला करती हो,
तुम कार्तिक की धुली चांदनी से,
ज्यादा निर्मल होती हो।
पल-पल जगती-सी आँखों में,
मेरी खातिर स्वप्न सजाती,
अपनी उम्र हमें देने को,
मंदिर में घंटियाँ बजाती,
जब-जब ये आँखें धुंधलाती,
तब-तब तुम काजल होती हो।
हम तो नहीं भागीरथ जैसे,
कैसे सिर से कर्ज उतारें,
तुम तो खुद ही गंगाजल हो,
तुमको हम किस जल से तारें,
तुम पर फूल चढ़ाएं कैसे,
तुम तो स्वंय कमल होती हो।


18. जब कभी शाम के साये मंडराते हैं,
मैं दिवाकिरण की आहट को रोक लेती हूँ,
और सायास एक बार,
उस तुलसी को पूजती हूँ,
जिसे रोपा था मेरी माँ ने,
नैनीताल जाने से पहले,
जब हम इसी आंगन में लौटे थे,
तब मैं उस माँ की याद में रो भी न सकी थी,
वह माँ जिसके सुमधुर गान फिर कभी सुन न सकी थी,
वह माँ जो उसी आँगन में बैठकर मुझे अल्पना उकेरना सिखा न सकी थी,
वह माँ जिसके बनाए व्यंजनों में मेरा भाग केवल नमकीन था,
वह माँ जिसके वस्त्रों में सहेजा गया ममत्व,
मेरी विरासत न बन,
एक परंपरा बन गया था,
वह माँ जिसके पुनर्वास के लिए,
हमने सहेजे थे कंदील और,
हम बैठे थे टिमटिमाते दीपों की छाया में,
और बैठे ही रहे थे।


19. माँ प्यारी माँ,
कोशिश की थी,
कविता लिखने की,
बरसों -पहले,
छोटी-सी आयु में,
सिख रहा था छंद कोई,
पंक्ति बन रही थी,
‘माँ, प्यारी माँ’,
तेरे ऋण है मुझ पर हजार,
बढ़ न सका आगे,
उलझनों में रह गया,
बढ़ रहा हूँ आज,
माँ प्यारी माँ,
तीरथ करती हो,
करते रहना,
पुण्य करती हो,
करते रहना,
छत है तेरे पुण्यों की,
करेगी रक्षा हम बच्चों की,
माँ प्यारी माँ।


20. बचपन में अच्छी लगे यौवन में नादान,
आती याद उम्र ढले क्या थी माँ कल्यान।
करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम,
रौशन अपने काम से करो पिता का नाम।
विद्या पाई आपने बने महा विद्वान,
माता पहली गुरु है सबकी ही कल्यान।
कैसे बचपन कट गया बिन चिंता कल्यान,
पर्दे पीछे माँ रही बन मेरा भगवान।
माता देती सपन है बच्चों को कल्यान,
उनको करता पूर्ण जो बनता वही महान।
बच्चे से पूछो जरा सबसे अच्छा कौन,
ऊँगली उठे उधर जिधर माँ बैठी हो मौन।
माँ कर देती माफ है कितने करो गुनाह,
अपने बच्चों के लिए उसका प्रेम अथाह।


21. चूल्हे की जलती रोटी सी,
तेज आंच में जलती माँ!
भीतर-भीतर बलके फिर भी,
बाहर नहीं उबलती माँ!
धागे-धागे यादें बुनती,
खुद को नई रुई सा धुनती,
दिन भर तनी तांत सी बजती,
घर-आंगन में चलती माँ!
सिर पर रखे हुए पूरा घर,
अपनी भूख-प्यास से ऊपर,
घर को नया जन्म देने में,
धीरे-धीरे गलती माँ!
फटी-पुरानी मैली धोती,
साँस-साँस में खुशबू बोती,
धूप-छांह में बनी एक सी,
चेहरा नहीं बदलती माँ!


22. थोड़ी-थोड़ी धुप निकलती थोड़ी बदली छाई है,
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
शॉल सरक कर कंधों से उजले पांवों तक आया है,
यादों के आकाश का टुकड़ा फटी दरी पर छाया है,
पहले उसको फुर्सत कब थी छत के ऊपर आने की,
उसकी पहली चिंता थी घर को जोड़ बनाने की,
बहुत दिनों पर धूप का दर्पण देख रही परछाई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
सिकुड़ी सिमटी उस लडकी को दुनिया की काली कथा मिली,
पापा के हिस्से का कर्ज मिला सबके हिस्से क व्यथा मिली,
बिखरे घर को जोड़ रही थी काल चक्र को मोड़ रही थी,
लालटेन-सी जलती-बुझती गहन अँधेरे तोड़ रही थी,
सन्नाटे में गूंज रही वह धीमी-सी शहनाई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
दूर गाँव से आई थी वह दादा कहते बच्ची है,
चाचा कहते भाभी मेरी फूलों से भी अच्छी है,
दादी को वह हंसती-गाती अनगढ़-सी गुड़िया लगती थी,
छोटा मैं था-मुझको तो वह आमों की बगिया लगती थी,
जीवन की इस कड़ी धुप में अब भी वह अमराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
नींद नहीं थी लेकिन थोड़े छोटे-छोटे सपने थे,
हरे किनारे वाली साड़ी गोटे-गोटे सपने थे,
रात-रात भर चिड़िया जगती पत्ता-पत्ता सेती थी,
कभी-कभी आंचल का कोना आँखों पर धर लेती थी,
धुंध और कोहरे में डूबी अम्मा एक तराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
हंसती थी तो घर में घी के दिए जलते थे,
फूल साथ में दामन उसका थामे चलते थे,
धीरे-धीरे घने बाल वे जाते हुए लगे,
दोनों आँखों के नीचे दो काले चाँद उगे,
आज चलन से बाहर जैसे अम्मा आना पाई है!
पापा को दरवाजे तक वह छोड़ लौटती थी,
आँखों में कुछ काले बादल जोड़ लौटती थी,
गहराती उन रातों में वह जलती रहती थी,
पूरे घर में किरन सरीखी चलती रहती थी,
जीवन में जो नहीं मिला उन सबकी भरपाई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
बड़े भागते तीखे दिन वह धीमी शांत बहा करती थी,
शायद उसके भीतर दुनिया कोई और रहा करती थी,
खूब जतन से सींचा उसने फसल-फसल को खेत-खेत को,
उसकी आँखें पढ़ लेती थीं नदी-नदी को, रेत-रेत को,
अम्मा कोई नाव डूबती बार-बार उतराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!


23. पूजा-घर का दीप बुझा है,
अम्मा चली गई।
अंत समय के लिए सहेजा,
गंगाजल भी नहीं पिया,
इच्छा तो कितनी थी लेकिन,
कोई तीरथ नहीं किया,
बेटों पर विश्वास बड़ा था,
आखिर छली गई।
लोहे की संदूक खुली,
भाभी ने लुगड़े छांट लिए,
और सुनार से वजन कराकर,
सबने गहने बाँट लिए,
फिर उजले संघर्षों पर भी,
कालिख मली गई।
रिश्तेदारों की पंचायत,
घर की फांकें, चटखारे,
उसकी इच्छाओं, हिदायतों,
सपनों पर फेरे आरे,
देख न पाती बिखरे घर को,
अम्मा! भली गई।


24. अंधियारी रातों में मुझको,
थपकी देकर कभी सुलाती,
कभी प्यार से मुझे चूमती,
कभी डांटकर पास बुलाती।
कभी आँख के आंसू मेरे,
आंचल से पोंछा करती वो,
सपनों के झूलों में अक्सर,
धीरे-धीरे मुझे झुलाती।
सब दुनिया से रूठ रपटकर,
जब मैं बेमन से सो जाता,
हौले से वो चादर खींचे,
अपने सीने मुझे लगाती।


25. माँ हमारी सदानीरा नदी जैसी,
महक है वह,
फूल वन की,
सघन मीठी छांव जैसी,
घने कोहरे में,
सुनहरी रोशनी के ठांव जैसी,
नेह का अमरित पिलाती,
माँ हमारी है गंभीरा नदी जैसी,
सुबह मिलती,
धूप बनकर,
शाम कोमल छाँव होकर,
रात भर रहती अकेली,
वह अंधेरों के तटों पर,
और रहती सदा हंसती,
माँ हमारी महाधीरा नदी जैसी,
एक मंदिर, ढाई आखर का,
उसी की आरती वह,
रोज नहला,
नेहजल से,
हम सभी को तारती वह,
हर तरफ विस्तार उसका,
माँ हमारी सिंधुतीरा नदी जैसी।


26. माँ तुम्हारा स्नेहपूर्ण स्पर्श,
अब भी सहलाता है मेरे माथे को,
तुम्हारी करुणा से भरी आँखें,
अब भी झुकती हैं मेरे चेहरे पर,
जीवन की खूंटी पर,
उदासी का थैला टांगते,
अब भी कानों में पड़ता है,
तुम्हारा स्वर,
कितना थक गई हो बेटी,
और तुम्हारे निर्बल हाथों को मैं,
महसूस करती हूँ अपनी पीठ पर,
माँ,
क्या तुम अब सचमुच नहीं हो,
नहीं,
मेरी आस्था, मेरा विश्वास, मेरी आशा,
सब यह कहते हैं कि माँ तुम हो,
मेरी आँखों के दिपते उजास में,
मेरे कंठ के माधुर्य में,
चूल्हे की गुनगुनी भोर में,
दरवाजे की सांकल में,
मीरा और सूर के पदों में,
मानस की चौपाई में,
माँ,
मेरे चारों ओर घूमती यह धरती,
तुम्हारा ही तो विस्तार है।


27. हाँ माँ यान तुम्हारी आई, कंठ रुंधा आँखें भर आई,
फिर स्मृति के घेरों में तुम मुझे बुलाने आई,
मैं अबोध बालक-सा सिसका सुधि बदरी बरसाई,
बालेपन की कथा कहानी पुनः स्मरण आई,
त्याग तपस्या तिरस्कार सब सहन किया माँ तुमने,
कर्म पथिक बनकर माँ तुमने अपनी लाज निभाई,
तुमसे ही तो मिला है जो कुछ उसको बाँट रहा हूँ,
तुम उदार मन की माता थीं तुमसे जीवन की निधि पाई,
नहीं सिखाया कभी किसी को दुःख पहुंचाना,
नहीं सिखाया लोभ कि जिसका अंत बड़ा दुखदाई,
स्वच्छ सरल जीवन की माँ तुमसे ही मिली है शिक्षा,
नहीं चाहिए जग के कंचन और झूठी पृभुताई,
मुझे तेरा आशीष चाहिए और नहीं कुछ मांगू,
सदा दुखी मन को बहला कर हर लूँ पीर पराई,
यदि मैं ऐसा कर पाऊं तो जीवन सफल बनाऊं,
तेरे चरणों में नत हो माँ तेरी ही महिमा गाई।


28. अपने आंचल की छाओं में,
छिपा लेती है हर दुःख से वोह,
एक दुआ दे दे तो,
काम सारे पूरे हों…
अदृश्य है भगवान,
ऐसा कहते है जो…
कहीं न कहीं एक सत्य से,
अपरिचित होते है वो…
खुद रोकर भी हमें,
हसाति है वोह…
हर सलीका हमें,
सिखलाती है वोह…
परेशानी हो चाहे जितनी भी,
हमारे लिए मुस्कुराती है वोह…
हमारी खुशियों की खातिर,
दुखों को भी गले लगाती है वो…
हम निभाएं न निभाएं,
अपना हर फर्ज निभाती है वोह…
हमने देखा जो सपना,
सच उसे बनाती है वो…
दुःख के बादल जो छाए हमपर,
तो धूप सी खिल जाती है वोह…
जिंदगी की हर रेस में,
हमारा होसला बढ़ाती है वोह…
हमारी आँखों से पढ़ लेती है,
तकलीफ और उसे मिटाती है वोह…
पर अपनी तकलीफ कभी नहीं जताती है वोह…
शायद तभी भगवान से भी ऊपर आती है वोह…
तब भी त्याग की मूरत नहीं माँ कहलाती है वोह…


29. माँ भगवान का दूसरा रूप,
उनके लिए दे देंगे जान,
हमको मिलता जीवन उनसे,
कदमों में है स्वर्ग बसा,
संस्कार वह हमें बतलाती,
अच्छा बुरा हमें बतलाती,
हमारी गलतियों को सुधारती,
यार वह हमपर बरसती,
तबियत अगर हो जाए खराब,
रात-रात भर जागते रहना,
माँ बिन जीवन है अधूरा,
खाली-खाली सूना-सूना,
खाना पहले हमें खिलाती,
बादमे वह खुद खाती,
हमारी खुशी में खुश हो जाती,
दुःख में हमारी आंसू बहाती,
कितने खुश नसीब है हम,
पास हमारे है माँ,
होते बदनसीब वो कितने,
जिनके पास न होती माँ।


30. माँ की ममता करुणा न्यारी,
जैसे दया की चादर,
शक्ति देती नित हम सबको,
बन अमृत की गागर,
साया बनकर साथ निभाती,
चोट न लगने देती,
पीड़ा अपने ऊपर ले लेती,
सदा-सदा सुख देती,
माँ का आंचल सब खुशियों की,
रंगा रंग फुलवारी,
इसके चरणों में जन्नत है,
आनंद की किलकारी,
अद्भुत माँ का रूप सलोना,
बिलकुल रब के जैसा,
प्रेम के सागर सा लहराता,
इसका अपनापन ऐसा…


31. प्यारी-प्यारी मेरी माँ,
प्यारी-प्यारी मेरी माँ,
सारे जग से न्यारी माँ।
लोरी रोज सुनाती है,
थपकी दे सुलाती है।
जब उतरे आंगन में धूप,
प्यार से मुझे जगाती है।
देती चीजें सारी माँ,
प्यारी-प्यारी मेरी माँ।
ऊँगली पकड़ चलाती है,
सुबह-शाम घुमाती है।
ममता भरे हुए हाथों से,
खाना रोज खिलाती है।
देवी जैसी मेरी माँ,
सारे जग से न्यारी माँ।


32. हमारे हर मर्ज की दवा होती है माँ,
कभी डांटती है हमें,
तो कभी गले लगा लेती है माँ,
हमारी आँखों के आंसू,
अपनी आँखों में समा लेती है माँ,
अपने होठों की हंसी,
हम पर लुटा देती है माँ,
हमारी खुशियों में शामिल होकर,
अपने गम भुला देती है माँ,
जब भी कभी ठोकर लगे,
तो हमें तुरंत याद आती है माँ,
दुनिया की तपिश में,
हमें आंचल की शीतल छाया देती है माँ,
खुद चाहे कितनी थकी हो,
हमें देखकर अपनी थकन भूल जाती है माँ,
प्यार भरे हाथों से,
हमेशा हमारी थकान मिटाती है माँ,
बात जब भी हो लजीज खाने की ,
तो हमें याद आती है माँ,
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ,
लब्जों में जिसे बयाँ नहीं किया जा सके ऐसी होती है माँ,
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाते हैं,
ऐसी होती है माँ।


33. माँ, क्या तुम कोई परियों की कहानी हो?
या मेरी कल्पना कोई पुरानी हो?
क्या तुम कोई परियों की कहानी हो?
क्या सचमुच मेरी जिंदगी में तेरा वजूद था?
या बस मेरे सोच के दायरे में सिमटी हो?
या हो कोई मधुर स्वप्न,
जो बस नींदों में बनती हो?
जिससे मेरा भाग्य है वंचित,
तुम वो गोद सुहानी हो,
माँ, क्या तुम कोई परियों की कहानी हो?
अतीत में गूंजती मीठी सी आवाज हो तुम,
एक धुंधली टिमटिमाती सी याद हो तुम,
जिसे जी भर के बुला न सकी,
वाही प्यारा सा अल्फाज हो तुम,
मेरे स्कूल के किस्सों, दोस्तों,
पसंद, नापसंद हर चीज से अनजानी हो,
माँ, क्या तुम कोई परियों की कहानी हो?
इतनी कम समझ, इतनी छोटी उम्र थी,
कि मौत के मतलब से भी बेखबर थी,
मैं रोज तेरा इंतजार करती थी,
सबसे तेरा ठिकाना पूछा करती थी,
फिर भ्रम और वास्तविकता वक्त ने बता दिया,
तेरे खालीपन ने मुझे लिखना सिखा दिया।


34. मीठा एहसास हुआ मुझको,
जब गोद में आई तुम मेरे,
पूर्ण हो गया जीवन मेरा,
जब गोद में आई तुम मेरे।
सारी पीड़ा दूर हो गई,
रूह की ममता जाग गई,
नैनों में एक आशा छाई,
जब गोद में आई तुम मेरे।
नया अब एक नाम मिला,
नया रूप जीवन में खिला,
पतझड़ में फिर से बाहर आई,
जब गोद में आई तुम मेरे।
देखा जब पहली बार तुझे,
चुमा जब पहली बार तुझे,
दिल अति आनंदित हो गया,
जब गोद में आई तुम मेरे।
डूबते को जैसे किनारा मिले,
अनाथ को जैसे सहारा मिले,
वो एहसास हुआ मुझको,
जब गोद में आई तुम मेरे।
सुनी जब तेरी किलकारी,
देखी जब तेरी मनुहारी,
दिल में उमंग सा छा गया,
जब गोद में आई तुम मेरे।
आशीष यही अब है मेरी,
काबिलियत हो तुममे इतनी,
इतराऊँ भाग्य पर मैं अपनी,
की गोद में खेली तुम मेरे।


35. मेरी सबसे प्यारी माँ, मॉम कहूँ या म्ममा,
तुम शरीर हो माँ और हम तो तेरी परछाई,
उस खुदा की हम पे नैमते, जो तू हम पर करे रहमते…
हमारे हंसने से रोने तक, हमारे जगने से सोने तक,
जिसकी हम पर दुहाईयाँ वो है मेरी सबसे प्यारी माँ…
मॉम कहूँ या म्ममा.. तुमने सुनाई बचपन में कितनी कहानियाँ,
हमने तुम से सिर्फ की लड़ाईयां…,
माफ कर दो माँ वो सारी बुराईयाँ,
हमको तो पसंद है माँ तेरी अच्छाईयां,
तुझसे जुदा न रह पाएँगे तुझसे जुदा न साँस ले पाएँगे..
जैसे आसमान अधूरा चाँद के बिना वैसे हम अधूरे हैं तेरे बिना,
यही है माँ हमारी सच्चाईयां,
माँ तुझसे है हमारी खुदाईयां..
मॉम कहु या मम्मा..


36. माँ वह दर्पण है,
माँ वह दर्पण है जिसमें ममता झलकती है,
माँ से ही दुनिया की मूरत बनती है,
तुम्हारी हर हंसी उसकी हंसी होती है,
तकलीफ में भी उसे परवाह तुम्हारी होती है,
तुम्हारे अपमान को वह सहती रहती है,
फिर भी तुम्हारी सलामती की वो दुआ करती रहती है,
तुम्हारे सपने को वो अपना सपना बना लेती है,
तुम्हारे लिए वो काँटों को भी अपना बिछौना बना लेती है,
माँ को छोडकर तुम एक नया परिवार बनाते हो,
माँ की ममता की तुम खुद ही चिता जलाते हो,
तुम्हारी यादों में वो हरपल रोती रहती है,
किस्मत वाले होते हैं जिनके माँ होती है,
जो हर वक्त तुम्हारे साथ रहती है,
ऐसी तो सिर्फ माँ होती है।


37. घुटनों से रेंगते-रेंगते,
कब पैरों पर खड़ा हुआ,
तेरी ममता की छाँव में,
जाने कब बड़ा हुआ…
काला टीका दूध मलाई,
आज भी सब कुछ वैसा है,
मैं ही मैं हूँ हर जगह,
माँ प्यार ये तेरा कैसा है?
सीधा-साधा, भोला-भाला,
मैं ही सबसे अच्छा हूँ,
कितना भी हो जाऊ बड़ा,
माँ! मैं आज भी तेरा बच्चा हूँ।


38. बचपन में माँ कहती थी,
बिल्ला रास्ता काटे,
तो बुरा होता है,
रुक जाना चाहिए…
मैं आज भी रुक जाता हूँ,
कोई बात है जो डरा,
देती है मुझे…
यकीन मानो,
मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…
मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।
दही खाने की आदत मेरी,
गई नहीं आज तक..
माँ कहती थी,
घर से दही खाकर निकलो,
तो शुभ होता है…
मैं आज भी हर सुबह दही,
खाकर निकलता हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…
मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।
आज भी मैं अँधेरा देखकर डर जाता हूँ,
भूत-प्रेत के किस्से खोफ पैदा करते हैं मुझमें,
जादू, टोने, टोटके पर मैं यकीन कर लेता हूँ।
बचपन में माँ कहती थी,
कुछ होते हैं बुरी नजर लगाने वाले,
कुछ होते हैं खुशियों में सताने वाले…
यकीन मानों, मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…
मैं माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।
मैंने भगवान को भी नहीं देखा जमीन पर,
मैंने अल्लाह को भी नहीं देखा,
लोग कहते हैं,
नास्तिक हूँ मैं,
मैं किसी भगवान को नहीं मानता,
लेकिन माँ को मानता हूँ।
मैं माँ को मानता हूँ।


39. आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया,
माँ की ऊँगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया।
उँगलियाँ पकड़कर माँ ने मेरी मुझे चलना सिखाया है,
खुद गीले में सोकर माँ ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है।
माँ की गोद में सोने को फिर से जी चाहता है,
हाथों से माँ के खाना खाने का जी चाहता है।
लगाकर साइन से माँ ने मेरी मुझको दूध पिलाया है,
रोने और चिल्लाने पर बड़े प्यार से चुप कराया है।
मेरी तकलीफ में मुझ से ज्यादा मरी माँ ही रोई है,
खिला-पिला के मुझको माँ मेरी, कभी भूखे पेट भी सोई है।
कभी खिलौनों से खिलाया है, कभी आंचल में छुपाया है,
गलतियाँ करने पर भी माँ ने मुझे हमेशा प्यार से समझाया है।
माँ के चरणों में मुझकों जन्नत नजर आती है,
लेकिन माँ मेरी मुझको हमेशा अपने सीने से लगाती है।


40. चुपके-चुपके मन ही मन में,
खुद को रोते देख रहा हूँ,
बेबस होके अपनी माँ को,
बूढा होता देख रहा हूँ।
रचा है बचपन की आँखों में,
खिला-खिला सा माँ का रूप,
जैसे जाड़े के मौसम में,
नरम-नरम मखमल सी धूप,
धीरे-धीरे सपनों के इस,
रूप को खोते देख रहा हूँ,
बेबस होके अपनी माँ को,
बूढा होता देख रहा हूँ…
छूट-छूट गया है धीरे-धीरे,
माँ के हाथ का खाना भी,
छीन लिया है वक्त ने उसकी,
बातों भरा खजाना भी,
घर की मालकिन को,
घर के कोने में सोते देख रहा हूँ,
चुपके-चुपके मन ही मन में,
खुद को रोते देख रहा हूँ…
बेबस होके अपनी माँ को,
बूढ़ा होते देख रहा हूँ…


41. जब चलते-चलते, मेरे पांव थक जाते हैं।
लापरवाही से, मेरे घाव पक जाते हैं।
बह जाते हैं, अपने सब।
ढह जाते हैं, सपने सब।
जब दिल के समंदर में, भीषण बाढ़ आती है।
सच बताऊँ दोस्तों, तब माँ बहुत याद आती है।


42. नींद बहुत आती है पड़ते-पड़ते..
माँ होती तो कह देता, एक प्याली चाय बना दे।
थक गया जली रोटी खा खाकर,
माँ होती तो कहा देता पराठे बना दे।
भीग गई आंसुओं से आँखें मेरी..
माँ होती तो कह देता आंचल दे दे।
रोज वही कोशिश खुश रहने की,
माँ होती तो मुस्कुरा लेता।
देर रात हो जाती है घर पहुंचते-पहुंचते,
माँ होती तो वक्त से घर लौट जाता।
बहुत दूर निकल आया हूँ घर से अपने,
तो तेरे सपनों की परवाह न होती,
.. तो बस चला आता।


43. हर रिश्ते में मिलावट देखी,
कच्चे रंगों की सजावट देखी,
लेकिन सालों साल देखा है माँ को,
उसके चेहरे पर न कभी थकावट देखी,
न ममता में कभी मिलावट देखी।


44. माँ ओए माँ का प्यार निराला,
उसने ही है मुझे संभाला,
मेरी मम्मी बड़ी प्यारी,
मेरी मम्मी बड़ी निराली,
क्या मैं उनकी बात बताऊँ,
सोचूं! उन्हें कैसे में जान पाऊं,
सुबह सवेरे मुझे उठाती,
कृष्णा कहकर मुझे जगाती,
जल्दी से तैयार मैं होता,
उसके कारण स्कूल जा पाता,
स्कूल से आते ही खुश होता,
जब मम्मी का चेहरा दिखता,
पोष्टिक भोजन मुझे खिलाती,
गृह कार्य भी पूरा करवाती,
माँ और माँ का प्यार निराला,
पर मैं करता गडबड घोटाला,
जब मैं करता कोई गलती,
समझाने की कोशिश करती,
लुटाती मुझ पर अधिक प्यार,
करती मुझ से अधिक दुलार,
मुझ पर गुस्सा जब है आता,
दो मिनट में उड़ भी जाता,
मेरी मम्मी मेरी जान,
रखती मेरा पूरा ध्यान,
माँ और माँ का प्यार निराला,
उसने ही है मुझे संभाला।


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