त्रिदोश – वात, पित्त और कफ क्या होतें है-Vata Pitta Kapha In Hindi
हमारे शरीर में तीन दोष वात, पित्त, कफ होतें अगर इनका संतुलन बिगड़ता है तो हम बीमार पड़ जातें हैं इसलिए वात, पित्त, कफ इन तीनो का संतुलन बना रहना बहुत ही आवश्यक है। यह हमारे शरीर के तीनो भागों में बटें होते हैं , शरीर के ऊपर के भाग में कफ होता है, शरीर के मध्य में पित्त होता है और शरीर के निकले भाग में वात होता है।
कफ और पित्त लगभग एक जैसे होते हैं। आम भाषा मे नाक से निकलने वाली बलगम को कफ कहते हैं। कफ थोड़ा गाढ़ा और चिपचिपा होता है। मुंह मे से निकलने वाली बलगम को पित्त कहते हैं। ये कम चिपचिपा और द्रव्य जैसा होता है। और शरीर से निकले वाली वायु को वात कहते हैं। ये अदृश्य होती है।
वात रोग क्या होता है-Vata Dosha In Hindi
वात पेट के नीचे वाले भाग में होता है वात, पित्त और कफ तीनों में से वात सबसे प्रमुख होता है क्योंकि पित्त और कफ भी वात के साथ सक्रिय होते हैं। शरीर में वायु का प्रमुख स्थान पक्वाशय में होता है और वायु का शरीर में फैल जाना ही वात रोग कहलाता है। हमारे शरीर में वात रोग 5 भागों में हो सकता है जो 5 नामों से जाना जाता है।
वात दोष के पांच भेद-Distinction of Vata Dosha In Hindi
• उदान वायु – यह कण्ठ में होती है।
• अपान वायु – यह बड़ी आंत से मलाशय तक होती है।
• प्राण वायु – यह हृदय या इससे ऊपरी भाग में होती है।
• व्यान वायु – यह पूरे शरीर में होती है।
• समान वायु – यह आमाशय और बड़ी आंत में होती है।
वात दोष के लक्षण-Vata Dosha Symptoms In Hindi
जब वात का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे लक्षण व्यक्ति के समाने नजर आते हैं जैसे शरीर पर प्रायः रूखापन, फटा फटा , दुबला पतला, पैरों में विवाई फटना, हथेलियां व ओठ फटना, अंग सख्त होना, शरीर पर नसों का उभार, सर्दी सहन ना होना , काले बाल, रूखे छोटे केश, कम केस, दाढ़ी मूछ का रूखा होना , उंगलियों के नाखून का रूखा व खुदरा होना-
जीभ मैली आवाज कर्कश में भारी, गंभीरता रहित स्वर अधिक बोलना, मुंह सूखता है, मुंह का स्वाद फीका का खराब होना, कभी कभी कम कभी ज्यादा प्यास लगना, मल रूखा झाग युक्त, मूत्र पतला गंदला रुकावट की शिकायत होना-
पसीना कम व बिना गंध वाला पसीना नींद कम आना, जम्हाई आना, सोते समय दांत किटकिटाना, स्वप्न सोते समय आकाश में उड़ने के स्वपन देखना चाल तेज होना, शर्दी बुरी लगती है, शीतल वस्तुएं अप्रिय लगती हैं, गर्म वस्तुओं की इच्छा होना , मीठे खट्टे नमकीन पदार्थ प्रिय लगते हैं।
अन्य लक्षण :
- रोगी का पेट फूलने लगता है तथा उसका पेट भारी-भारी सा लगने लगता है।
- रोगी के शरीर में दर्द रहता है।
- रोगी का मुंह सूखने लगता है।
- पीड़ित रोगी के शरीर की त्वचा का रंग मैला सा होने लगता है।
- पीड़ित रोगी के शरीर में खुश्की तथा रूखापन होने लगता है।
वात दोष से होने वाले 80 रोग-80 Diseases Caused By Vata Dosha In Hindi
पैरों में दर्द , पैरों का सुन्न होना , नाखून का फटना, विवाई , पैरों की अस्थि में पीड़ा , संधियों में अकड़न , साईटिका , पंगत्व , गुदा में पीड़ा , वृषण पीड़ा , कमर दर्द , कुबड़ापन , बौनापन , पीठ अकड़ना , पेट में ऐठन , घबराहट , ह्रदय पीड़ा , वक्ष पीड़ा , हाथो का दर्द, गर्दन, जबड़े , दांतो में दर्द, ओष्ठ का फटना, गूंगापन , वाणी दोष , असंबन्ध बोलना , मुहु में कसैलापन , मुँहू सूखना , गुदा का बहार आना , लिंग स्तब्धता , डकार आना , पेट फूलना , रश व् गंध का ज्ञान न होना , बहरापन , पलकों की स्तब्धता , नेत्र रोग , कनपटी वेदना , रूसी होना , सर दर्द , लकवा , पोलिपिलीजिया , झटका आना , थकावट , चक्कर आना , कंम्पन , जम्भाई , रूखापन , अप्रसन्नता , नींद न आना , अस्थिर चित्त आदि।
वात का संतुलन बिगड़ने के कारण-Vata Dosha Causes In Hindi
वात रोग के होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे भोजन ठीक तरह से न पचना या पाचन क्रिया का ख़राब हो जाना, पेट में गैस का रहना, इसका सबसे प्रमुख कारण पक्वाशय, आमाशय तथा मलाशय में वायु का भर जाना है, पुराणी कब्ज के कारण, ठीक समय पर शौच तथा मूत्र त्याग न करने के कारण भी वात रोग हो सकता है इत्यादि।
वात का संतुलन कैसे बनायें-Prevention of Vata Dosha In Hindi
इसका संतुलन बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा जैसे शाम का भोजन दोपहर के भोजन से कम करना चाहिए और सूरज के अस्त होने से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना चाहिए। शाम को सोते समय गुड, दूध और त्रफला चूर्ण का प्रयोग कर करें ऐसा करने से आपका वात संतुलन में रहेगा।
वात दोष का आयुर्वेदिक उपचार-Vata Dosha Treatment In Hindi
वात रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को लगभग 5-7 दिनों तक फलों का रस (जैसे आप फलों के रश में मौसमी, अंगूर, संतरा, नीबू इत्यादि को सामिल कर सकते हैं) पीना चाहिए। इसके साथ-साथ रोगी को दिन में कम से कम 3-4 बार 1 चम्मच शहद चाटना चाहिए।
वात रोग के होने पर रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम आधा चम्मच मेथीदाना तथा थोड़ी सी अजवायन का सेवन करना चाहिए। इनका सेवन करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। और सुबह सरसों की तेल की मालिश करें कसेली वस्तुओं का सेवन करें गहरे रंग के पत्तों की सब्जी खाएं व पेट साफ रखें गाय का घी व मेथी व चूना खाएं।
स्वस्थ रहने के नियम खोजने के लिए यहं दबाएँ :- Health Tips In Hindi
पित्त दोष क्या होता है-Pitta Dosha In Hindi
पित्त शरीर के मध्य में होता है पेट से होने वाली बीमारिया पित्त के संतुलन बिगड़ने से होती है। शरीर में पित्त अग्नि का प्रतिनिधि है। भोजन का पाक और आहार के तत्वों का विघटन करके रस धातुओं आदि को रूप देता है, जिससे धातुयें पुष्ट होती है।
पित्त द्वारा रक्त, त्वचा आदि अंगों को रंजक वर्ण प्रदान किया जाता है। पित्त हृदय पर स्थिति श्लेष्मा को दूर करता है। अपक्व अवस्था मे पित्त शरीर में अम्ल और अम्लपित्त जैसी तकलीफें पैदा करता है।
पित्त दोष के पांच भेद-Distinction of Pitta Dosha In Hindi
1- साधक पित्त : मेधा और धारण शक्ति को बढाता है।
2- भ्राक पित्त : यह चमडे मे रहता है और कान्ति उत्पन्न करता है।
3- रंजक पित्त : यह पित्त रंगनें का कार्य करता है।
4- लोचक पित्त : यह पित्त दोनों आखों में रहता है, इसी से जीव को दिखाई देता है।
5- पाचक पित्त : यह पित्त चूंकि भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और चोष्य इन चार प्रकार के भोजनों को पचाता है, इसलिये इसे पाचक पित्त कहते हैं।
पित्त दोष के लक्षण-Pitta Dosha Symptoms In Hindi
जब पित्त का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे लक्षण व्यक्ति के समाने नजर आते हैं जैसे – नाजुक शरीर का होना, शिथिल त्वचा का होना व त्वचा पीली व नरम हो जाती है, त्वचा फुंसियां व तिलों से भरी हुई होती हैं, हथेलियां जीव कान लाल रंग के हो जाते हैं, गर्मी बर्दाश्त नहीं होती है, वर्ण पीला हो जाता है, केस या बालों का छोटी उम्र में झड़ना, व् सफेद होना, रोम कम होना, नाखून व् जीव का लाल पड़ना, आवाज स्पष्ट और कंठ सूखता है, मुंह का स्वाद कड़वा, व् कभी खट्टा होना, मुँहू व जीभ में छाले का होना, पाचन शक्ति अधिक होती है , प्यास अधिक लगती है, मल पतला व पीला होना, मूत्र में कभी जलन कभी पीलापन होना, कम पसीना आना, दुर्गंधयुक्त गरम पसीना, सपनो में सूर्य चंद्रमा चमकीला पदार्थ देखना, फूलो की माला प्रिया लगती हैं, गर्मी धूप पसंद नहीं आती, गर्म तासीर का भोजन पसंद नहीं आता|
पित्त दोष के कार्य-Work of Pitta Dosha In Hindi
पित्त हमारे शरीर में बहुत से कार्य करता है जैसे भोजन को पचाता है , नेत्र ज्योयी में फायदेमंद होता है , शरीर में से मल को बहार निकालने में मदद करता है, स्मृति तथा बुद्धि प्रदान करता है , भूक प्यास को नियंत्रित रखता है, त्वचा में कांति और प्रभा की उत्पत्ति करता है, शरीर के तापमान को स्थिर रखता है इत्यादि।
पित्त दोष से होने वाले 40 रोग-40 Diseases Caused By Pitta Dosha In Hindi
अधिक गर्मी लगना, शरीर के अंगों में जलन होना, त्वचा रोग, अम्ल बनना, खट्टी डकारें, त्वचा पर चकत्ते पड़ना, हाईपरथीमियां, शरीर में शिथिलता, रक्त में सड़न, दुर्गंधयुक्त पसीना, पीलिया रोग, कड़वा मुंह, मुंह से दुर्गंध, बदबूदार वायु, अधिक प्यास लगना, गले का पकना, मास का सड़ना , त्वचा फटना, नेत्र का पकना, मूत्रमार्ग का पाक, अंधेरा छाना या मूर्छा आना इत्यादि
पित्त का संतुलन बिगड़ने के कारण-Pitta Dosha Causes In Hindi
पित्त बिगड़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे जरूरत से अधिक कडवा खाने पर, आयोडीन नमक का अधिक सेवन करने से, नशीले पदार्थों का सेवन करने से, फास्ट फ़ूड के अधिक सेवन करने से, तले हुए भोजन अधिक सेवन से, गर्म व जलन पैदा करने वाले भोजन का सेवन करने से इत्यादि।
पित्त का संतुलन कैसे बनायें-Prevention of Pitta Dosha In Hindi
इसका संतुलन बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा जैसे दोपहर समय में छाछ, (मठ्ठा) का सेवन करना चाहिए | क्यूंकि पित्त का प्रभाव दोपहर के समय अधिक होता है। और देसी गाय का घी और त्रफला चूर्ण का प्रयोग कर सकते हैं। इन सबका निरंतर प्रयोग करने से पित्त संतुलन में हो जाएगा।
पित्त दोष का आयुर्वेदिक उपचार-Treatment of Pitta Dosha In Hindi
10 ग्राम आंवला रात को पानी में भिगो दें और प्रातःकाल आंवले को मसलकर छान लें अब इस पानी में थोड़ी मिश्री और जीरे का चूर्ण मिलाकर इसका सेवन करें। इसका प्रयोग 15-20 दिन करना चाहिए।
कफ दोष क्या होता है-Kapha Dosha In Hindi
कफ का असर शरीर के सर से लेकर सीने तक होता है जैसे : सिर, नाक, गले, छाती, फेफड़े, नसों, मुख। कफ दोष को जैविक जल कहा जा सकता है। यह दोष पृथ्वी और जल इन दो महाभूतों द्वारा उत्पन्न होता है। पृथ्वी तत्व किसी भी पदार्थ की संरचना के लिए आवश्यक है अथार्त शरीर का आकार और संरचना कफ दोष पर आधारित होते है।
कफ दोष के पांच भेद-Distinction of Kapha Dosha In Hindi
1- क्लेदन कफ : यह कफ अन्न को गीला करता है और आमाशय में रहता है तथा अन्न को अलग अलग करता है।
2- अवलम्बन कफ : यह हृदय में रहता है और अपनें अवलम्बन र्म द्वारा हृदय का पोषण करता है।
3- श्लेष्मन कफ : यह कफ सन्धियों में रहता है और इन स्थानों को कफ विहीन नहीं करता है।
4- रसन कफ : यह कन्ठ में रहता है और रस को गृहण करता है। कड़वे और चरपरे रसों का ज्ञान इसी से होता है।
5- स्नेहन कफ : यह कफ मस्तक में रहता है और शरीर की समस्त इन्द्रियों को तृप्त करता है।
कफ दोष के लक्षण-Kapha Dosha Symptoms In Hindi
जब कफ का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे लक्षण व्यक्ति के समाने नजर आते हैं जैसे- मोटापा बढ़ना, आलस्य, भूख- प्यास कम लगना, मुंह से बलगम का आना, नाखून चिकने रहते हैं, गुस्सा कम आता है, घने, घुंघराले, काले केश(बाल) होना, आखों का सफ़ेद होना, जीभ का सफेद रेग के लेप की तरह का होना, कभी-कभी कभी लार भी बहती है, मूत्र सफेद सा, मूत्र की मात्रा अधिक होना, गाढ़ा व चिकना होना नींद अधिक आना इत्यादि। सुडौल अंगों का होना, त्वचा पर चिकनाई आना, सर्दी बर्दाश्त नहीं होना, नाखून चिकने दिखना आदि|
कफ दोष से होने वाले 20 रोग-20 Diseases Caused By Pitta Dosha In Hindi
जब कफ का संतुलन बिगड़ता है तो ऐसे रोग हमको लग जातें हैं जैसे सिर का दर्द, खांसी, जुकाम, आधासीसी दर्द, शरीर में आलस्य बढ़ जाता है – भूख ना लगना, त्वचा में सफेदी का दिखना, तंद्रा, शरीर में भारीपन व आद्रता का होना, मीठेपन का मन करना, लाल स्त्राव का आना, बालतोड़ होना, ओबेसिटी इत्यादि|
कफ का संतुलन बिगड़ने के कारण-Kapha Dosha Causes In Hindi
कफ बिगड़ने के कई कारण हो सकते हैं जैसे- कफ स्वरूप वाले सेवन से फल जैसे बादाम , केले, आम, खरबूजा, पपीता इत्यादि, और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे अधिक मात्रा में वसायुक्त पदार्थ का सेवन करना जैसे मांस, ढूध मक्खन, पनीर, क्रीम, इत्यादि।
कफ का संतुलन कैसे बनायें-Prevention of Kapha Dosha In Hindi
कफ संतुलन बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा जैसे सुबह का नास्ता थोडा हल्का करें और सुबह गुनगुने पानी का प्रयोग करें, त्रफला चूर्ण का प्रयोग करे क्यूंकि कफ का प्रभाव सबसे ज्यादा सुबह के समय होता है अगर आप इन सूत्रों का अच्छे से पालन करेंगे तो आपके ये तीनो दोष वात, पित्त, कफ हमेसा संतुलित रहंगे और आप कभी भी बीमार नहीं पड़ेंगे।
यह भी पढ़ें – Bukhar Ka Ilaj
प्रकृति विश्लेषण के साथ अपना शरीर प्रकार कैसे खोजें :
प्रकृति हर व्यक्ति के लिए अद्वितीय है जैसे आपके फिंगरप्रिंट। यह निषेचन की प्रक्रिया के दौरान निर्धारित होता है और आपके जीवन काल के लिए स्थिर रहता है। व्यक्ति के लिए शरीर के प्रकार का निर्धारण करने का आयुर्वेद का अनूठा तरीका है प्रकृति का विश्लेषण।
प्रकृति का विश्लेषण एक प्रश्नावली का उपयोग किया जाता है जिसमें आपकी जीवनशैली, शारीरिक लक्षणों, शारीरिक विकार जैसे पाचन, उत्सर्जन, मूड, प्रकृति आदि से संबंधित कई प्रश्न शामिल होते हैं।
अलग-अलग प्रकार के प्रकृति में निम्न शामिल हैं:
- वात
- पित्त
- कफ
- वात-पित्त
- पित्त-वात
- पित्त-कफ
- कफ-पित्त
- कफ-वात
- वात-कफ
- वात-पित्त-कप