ज्ञान मुद्रा क्या है :-
संस्कृत में ज्ञान का मतलब होता है बुद्धिमत्ता। इसे अंग्रजी में Mudra of Knowledge भी कहा जाता है। इसका नियमित अभ्यास करने से बुद्धिमत्ता में वृद्धि होती है। जब हम ज्ञान मुद्रा में योग करते हैं तो हमारी बुद्धि तेज होती है। इसलिए इस योग को करने के लिए ध्यान लगाना बहुत ही आवश्यक है। हमारा अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतीक है और तर्जनी अंगुली वायु तत्व की प्रतीक है। ज्योतिष के अनुसार हमारा अंगूठा मंगल ग्रह का प्रतीक ओर तर्जनी अंगुली बृहस्पति का प्रतीक होता है।
जब ये दोनों तत्व आपस में मिलने से वायु तत्व में वुद्धि होती है जिसके कारण बृहस्पति का प्रभाव बढ़ता है। यही कारण है कि योग आसन करने से हमारी बुद्धि का विकास होता है। ज्ञान मुद्रा से वायु महाभूत बढ़ता है इसलिए इसे वायु वर्धक मुद्रा भी कहा जाता है। ज्ञान मुद्रा शिरोमणि मुद्रा है। गीता में भी एक लेख आता है जिसमें कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था जो गीता में ही था। मूर्तियों एवं चित्रों में बहुत से भगवानों जैसे – भगवान शिव , देवी सरस्वती ,भगवान बुद्ध , गुरु नानक देव जी आदि को ज्ञान मुद्रा में ही दिखाया गया है।
ज्ञान मुद्रा का महत्व :-
योग में ज्ञानमुद्रा को इसलिए शक्तिशाली कहा गया है क्योंकि यह मुद्रा आपकी तंद्रा को तोड़ती है। हाथों की ग्रंथियों का संबंध सीधे हमारे मस्तिष्क से होता है। दाएँ हाथ का संबंध बाएँ और बाएँ हाथ का संबंध दाएँ मस्तिष्क से माना गया है। ज्ञानमुद्रा से मस्तिष्क के सोए हुए तंतु जाग्रत होकर मानव के होश को बढ़ाते हैं। ज्ञान का अर्थ ढेर सारी जानकारी या वैचारिकता से नहीं बल्कि होश से है। होशपूर्ण व्यक्तित्व के चित्त पर किसी भी प्रकार के कर्म या विचारों का दाग नहीं बनता।
ज्ञान मुद्रा की विधि :-
1- सबसे पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर दरी / चटाई बिछा दे।
2- अब सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठ जाये।
3- अब अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रखे और हाथों की हथेली आकाश की तरफ होनी चाहिए।
4- अब तर्जनी उंगली को गोलाकार मोडकर अंगूठे के अग्रभाग को स्पर्श करना हैं। और अन्य तीनों उंगलियों को सीधा रखें यह ज्ञान मुद्रा दोनों हाथो से करें।
5- मन से सारे विचार निकालकर मन को केवल ॐ पर केन्द्रित करना हैं।
मुद्रा करने का समय :-
इसे 15 मिनट से 45 मिनट तक करें। चलते – फिरते , सोते – जागते , उठते – बैठते भी यह मुद्रा लगाई जा सकती है। जितना अधिक समय लगाएंगे , उतना ही लाभ भी बढ़ जाएगा। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं।
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अंगूठा व् तर्जनी से अभिप्राय :-
अंगूठा अग्नि तत्व है और तर्जनी उंगली वायु तत्व। ज्योतिष अथवा ग्रहों की विधा में अंगूठा मंगल और तर्जनी गुरु ग्रह के प्रतीक हैं। इन दोनों तत्वों व ग्रहों के मिलन से वायु तत्व बढ़ता है और गुरु का वर्चस्व होता है। इसे शिव और शक्ति का मिलाप भी कहा जाता है। वायु के बिना अग्नि जल नहीं सकती और वायु के मिलने से अग्नि बढती है। अंगूठा बुद्धि का प्रतीक है और अग्नि का भी। अत: तर्जनी और अंगूठे के मिलन से बुद्धि का विकास होता है। अंगूठा परमात्मा और तर्जनी आत्मा की प्रतीक है।
ज्ञान मुद्रा करने के लाभ :-
1. अंगूठे व तर्जनी के मिलने से वायु तत्व में वृधि होती है। इससे नकारात्मक विचार दूर होते हैं। बुद्धि का विकास होता है। एकाग्रता बढती है। स्मरण शक्ति बढती है और मानसिक शक्ति का विकास होता है। हम अपने मस्तिष्क का केवल 10 प्रतिशत ही प्रयोग करते हैं। परन्तु संकल्प के साथ हम इसकी संपूर्ण शक्तियों का उपयोग करना आरंभ कर देते हैं।
2. मस्तिष्क के ज्ञान तन्तु क्रियाशील होते हैं। अंगूठे के अग्रभाग व तर्जनी के अग्रभाग के हल्के से स्पर्शमात्र से हमारे मन व मस्तिष्क में अदभुत हलचल सी प्रारंभ हो जाती है। हल्का सा स्पदन होता है।
3. एकाग्रता बढ़ने से बुद्धिजीवियों , चिंतकों , शिक्षकों , विद्यार्थियों के लिए अति उत्तम मुद्रा। इसलिए इस मुद्रा को सरस्वती मुद्रा भी कहा जाता है।
4. कैसा भी मन्द बुद्धि बालक हो , उसकी मेघा शक्ति शीघ्रता से विकसित होने लगती है और स्मरण शक्ति भी तीव्र होती है। जब अग्नि और वायु आपस में मिलते हैं तो क्या होता है ? अग्नि प्रचण्ड होती है। ठीक इसी प्रकार जब तर्जनी और अंगूठे का मिलन होता है तो बुद्धि का विकास होता है। मन्द बुद्धि भी चमक उठती है।
5. अंगूठे के अग्रभाव में मस्तिष्क व पिट्यूटरी ग्रन्थि के दवाब बिंदु होते हैं और तर्जनी के अग्रभाग पर मन का बिन्दु है। जब इन दोनों का हल्का सा स्पर्श करते ही हल्का सा दवाब बनता है तो मन , मस्तिष्क और पित्युत्री ग्रन्थि- तीनो जागृत होते हैं। अग्नि और वायु के सम्पर्क में जब अग्नि प्रचण्ड होती है तो मन की गंदगी एवं विक्र्तियाँ निर्मल हो जाती है। और फलस्वरूप मानसिक स्वच्छता आती है।
6. मस्तिष्क में स्थित पित्युत्री ग्रन्थि, पीनियल ग्रन्थि प्रभावित होती है। तनाव से होने वाले सभी रोगों जैसे हाई BP सिर दर्द सुगर इत्यादि में लाभ होता है। तीनो समय इस मुद्रा को करने से बहुत लाभ होता है।
7. हमारे स्नायु तन्त्र पर इस मुद्रा का त्वरित प्रभाव पड़ता है, मन और मस्तिष्क का समन्वय होता है। मन से कुविचार, नकारात्मक, बुरे विचार दूर होते हैं। मानसिक तनाव से त्वरित मुक्ति मिलती है और तनाव जन्य सिर दर्द भी दूर होता है। इसके निरंतर अभ्यास से मन का पागलपन दूर होता है।
8. सिर दर्द और माइग्रेन में ज्ञान मुद्रा और प्राण मुद्रा साथ-साथ करने से अधिक लाभ होता है। 15 मिनट ज्ञान मुद्रा और 15 मिनट प्राण मुद्रा करें।
9. बैचेनी, पागलपन, चिडचिडापन, क्रोध इत्यादि रोगों में लाभकारी है। यह मुद्रा शांति प्रदान करती है Tranquilizer का काम करती है, इसलिए अनिद्रा रोग में भी लाभकारी। बेहोसी में भी इस मुद्रा का लाभ है।
10. आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति के लिए यह मुद्रा अति आवश्यक है। ज्ञानमुद्रा की निरन्तर साधना से मानव का ज्ञान तन्त्र विकसित होता है । छठी इंद्री का विकास होता है। इससे हमें भूत , भविष्य तथा वर्तमान की घटनाओं का आभास हो सकता है। दूसरों के मन की बातों को जान सकने की क्षमता प्राप्त होती है। ध्यान और समाधि में यह मुद्रा अनिवार्य है।
11. अपने कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए इस मुद्रा की साधना करने से लाभ होता है। ह्रदय रोग में भी यह बहुत लाभकारी है।
12. इस मुद्रा से दांत दर्द , और त्वचा रोग दूर होते हैं , तथा यह सौंदर्यवर्धक भी है। चेहरे के दाग , झाइयाँ दूर होती हैं और चेहरे की आभा बढती है।
13. नशे की आदत छुड़ाने के लिए भी यह मुद्रा सहायक है। सभी प्रकार के नशे व बुरी आदतों को छुड़ाने में बहुत लाभकारी है।
14. इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से कामवासना घटती है।
15. ज्ञान मुद्रा , मुद्रा विज्ञान की आत्मा है । यह एक एसी मुद्रा है जो लगातार चोबीसों घंटे लगातार लगाई जा सकती है। ज्ञान मुद्रा आत्मा , मन , बुद्धि व शरीर सभी को प्रभावित करती है। यह रोग प्रतिरोधक भी है , और रोगनाशक भी तथा आध्यात्मिक साधना में भी बहुत ही सहायक है।
16. जब अंगूठा और तर्जनी आपस में मिलते हैं तो भाग्योदय होता है।
17. ज्ञान मुद्रा समस्त स्नायु मण्डल को शक्तिशाली बनाती है , चेतना व प्राणशक्ति मिलकर बहती रहती है। इसीलिए आज के मानसिक तनाव के युग में बहुत उत्तम मुद्रा है।
18. Hyperactive बच्चों के लिए यह मुद्रा बहुत अच्छी है।
19. इस मुद्रा का अभ्यास नित्य प्रतिदिन एक घंटा बैठकर गहरे श्वासों के साथ करने से बुद्धि प्रखर होती है , तेजस्व बढ़ता है , सुख शान्ति का अनुभव होता है और हम पूर्णतय निरोग हो जाते हैं।
20. बुढापे में अल्जायमर से बचने के लिए एवं इस रोग से ग्रसित व्यक्ति भी रोज इस मुद्रा का अभ्यास करें।
21. अंगूठा आंतरिक शक्ति व ऊर्जा का प्रतीक है और तर्जनी बाह्य ऊर्जा का । दोनों के मिलने से इनका समन्वय हो जाता है और हम दिव्य शक्तियों को प्राप्त करते हैं।
22. यह मुद्रा हमें ध्यान से जोडती है।
23. शरीर में रोग प्रतिकार की शक्ति बढ़ती है।
24. इसको करने से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है।
सावधानियां :-
यह ज्ञान मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए। अगर आप कुर्सी पर बैठ कर ये मुद्रा कर रहें है तो पैरों को हिलाना नहीं चाहिए। इस मुद्रा में ध्यान नहीं भटकाना चाहिए।
English में यहाँ से जाने – Gyan Mudra: The gesture of knowledge or wisdom
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