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नोटबंदी पर निबंध-Notebandi Par Nibandh In Hindi

नोटबंदी पर निबंध (Notebandi Par Nibandh In Hindi) :

भूमिका : नोटबंदी में जब पुराने नोटों और सिक्कों को बंद करके नए नोट और सिक्के चलाये जाते हैं उसे नोटबंदी कहते हैं। नोटबंदी एक प्रक्रिया होती है जिसमें मुद्रा का कानूनी दर्जा निकाल दिया जाता है और यह सिक्कों में भी लागू होता है। पुराने नोटों और सिक्कों को बदल दिया जाता है और उनकी जगह पर नए नोटों और सिक्कों को लागू कर दिया जाता है।

जब नोटबंदी के नए नोट समाज में आ जाते हैं तो पुराने नोटों की कोई कीमत नहीं रहती है। पुराने नोटों को बैंकों और एटीएम से बदलवाया जाता है। नोटों को बदलवाने के लिए समय निर्धारित किया जाता है। नोटों को बैंक की मदद से बदलवाया जा सकता हैं।

नोटबंदी का कारण : भ्रष्टाचार, कालाधन, नकली नोट, मंहगाई और आतंकवादी गतिविधियों पर काबू पाने के लिए ही नोटबंदी का उपयोग किया जा सकता है। जो लोग भ्रष्टाचारी होते हैं वो काले धन को कैश में छुपाकर रखते हैं जिससे वो उस पर लगने वाले कर से बच सकें।

इसी धन को आतंकवादी कारणों के लिए प्रयोग किया जाता है। नोटबंदी की वजह से ही भ्रष्ट और आतंकवादी लोगों को पुराने नोटों को इस्तेमाल करने की वजह से ही पकड़ा गया है। कभी-कभी तो नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबंदी का सहारा लिया जाता है।

भारत में नोटबंदी : हमारा भारत पहला देश नहीं है जहाँ पर नोटबंदी हुई है। भारत में पहली बार वर्ष 1946 में 500, 1000, और दस हजार के नोटों की नोटबंदी की गई थी। मोरारजी में भी जनवरी, 1978 में 1000, 5000, और 10000 के नोटों को बंद किया गया था | भारत में 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार ने भी 2005 से पहले के 500 के नोटों को बदलवा दिया था।

जब यूरोप यूनियम बना तब उन्होंने यूरो नाम की नई करेंसी चलाई थी तब सारे पुराने नोट बैंकों में जमा करवाए गये थे। यूरोप में हुई इस नोटबंदी ने यूरोप में बवाल मचा दिया था लेकिन शायद भारत में हुआ उतना नहीं। जिम्बाब्वे में भी महंगाई से बचने के लिए 2015 में नोटबंदी का प्रयोग किया गया था। भारत में पहले भी नोटबंदी हुई थी परंतु वह इतनी प्रसिद्ध नहीं हुई थी।

आज हम छोटे सिक्कों जैसे 5, 10, 20, 50, 100 पैसों का प्रयोग नहीं करते हैं उन्हें भी बंद किया गया था। लेकिन 500 और 1000 के नोटों की नोटबंदी की कहानी ही अलग है। इन दो करेंसी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के 86% भाग को काबिज किया था यही नोट बाजार में सबसे अधिक चलते थे। इसी वजह से इसका इतना बड़ा बवाल और परिणाम हुआ।

8 नवम्बर, 2016 की नोटबंदी : 8 नवम्बर, 2016 को 8:15 बजे 500 और 1000 के नोटों की नोटबंदी की घोषणा की गई। लोगों को आशा थी कि प्रधानमंत्री जी भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली नोक-झोक की बात करेंगे लेकिन नोटबंदी की घोषणा ने तो सभी को हिला कर रख दिया।

कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री जी का समर्थन किया तो कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री जी का विरोध किया और नोटबंदी को खारिज करने की मांग की लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिन लोगों ने काले धन को छिपा कर रखा हुआ था वो सुनारों के पास जाकर उस धन से सोना खरीदने लगे। नोटबंदी की घोषणा के अगले दिन से ही बैंकों और एटीएम के बाहर लाईने लगनी शुरू हो गयीं।

सरकार ने काला धन निकालने के लिए बहुत प्रयत्न किये जैसे – बैंकों में नोटों को बदलवाने की संख्या में घटा-बढ़ी की गई, नए-नए कानून बनाए गये, नियमों को सख्ती से लागू किया गया। सरकार ने अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए 50 दिन का समय माँगा। पुराने नोटों को बदलने के लिए 500 और 2000 के नए नोटों को चलाया गया।

विपक्षी पार्टी का विरोध : प्रधानमंत्री जी की नोटबंदी की योजना को विपक्ष पार्टी ने असफल और देश के पिछड़ने की वजह बताया लेकिन प्रधानमंत्री जी अपने फैसले पर अड़े रहे। विपक्षी पार्टी इस तरह से नोटबंदी का विरोध कर रही थी मानो उन्होंने अपने पास बहुत सारा काला धन छुपा कर रखा हुआ है।

पूरी विपक्ष पार्टी ने नोटबंदी की योजना का विरोध किया और उनके खिलाफ बहुत से कदम भी उठाये जैसे – मोर्चे, प्रदर्शन, रोष प्रकट करना आदि लेकिन फिर भी नोटबंदी को रोका नहीं जा सका। नोटबंदी के कारण ही अनेकता में एकता का भाव सार्थक हुआ था।

नोटबंदी में मिडिया : नोटबंदी में मिडिया का बहुत ही अच्छा रोल था। कुछ मिडिया वाले नोटबंदी के पक्ष में थे तो कुछ नोटबंदी के विरोध में थे। कुछ खबरों में लोगों को लाईनों में खड़े होकर मजे लेते हुए देखा गया तो कुछ लोगों को नोटबंदी की वजह से आत्महत्या करते भी देखा गया।

कुछ खबरों के मुताबिक लगभग सौ लोगों ने अपनी जान लाईनों में खड़े होकर गंवा दी। मिडिया में यह भी बताया गया कि लोग जब फिल्में देखने के लिए टिकट खरीदने के लिए बड़ी-बड़ी लाईने लगाते है तब लोगों को कोई समस्या नहीं होती है लेकिन नोटबंदी के हानिकारक प्रभावों को लोगों ने बहुत ही बढ़ा-चढा कर बताया है।

नोटबंदी के लाभ : सभी जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अगर नोटबंदी की हानियाँ हैं तो कुछ फायदे भी हैं। अगर नोटबंदी नहीं होती तो भारत में कभी भी आर्थिक जागरूकता नहीं फैलती और शायद जीएसटी के बिल और इसका कार्यान्वयन करने में बहुत तकलीफ होती।

नोटबंदी की वजह से आम लोगों को आर्थिक कर और उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ है यह बहुत बड़ी बात है। नोटबंदी के होने से सभी ओग ऑनलाईन, डिजिटल पेमेंट करने लगे हैं। यहाँ तक की चायवाला, किरानेवाला, जेरॉक्स, प्रिंटिंग वाला भी अब ओनलाईन भुगतान करवाता है। यह नोटबंदी में एक बहुत ही बड़ी उपलब्धी है।

नोटबंदी के कारण ही लोगों में भाईचारे की भावना का विकास हुआ। अमीर लोगों को अपने दोस्त, रिश्तेदार, माँ, बाप याद आने लगे और उनमें मानवता का भाव उत्पन्न हुआ उस समय उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे मानवता को दुबारा से जिंदा कर दिया गया हो। नोटबंदी की वजह से ही हमें लोगों की बुद्धिमता देखने का मौका मिला।

लोगों ने अपने काले धन को छुपाने के लिए नए-नए तरीकों को अपनाया। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था कुछ समय के लिए प्रभावित जरुर हुई है लेकिन बाद में इसके परिणाम बहुत अच्छे निकलेंगे। नोटबंदी की वजह से नकली नोट छापने का काम भी बंद हो गया है जिसकी वजह से देश से नकली नोटों को बहुत बड़ी मात्रा में निकाल दिया गया है।

नोटबंदी की वजह से ही कश्मीर भी शांत हो गया। भारत देश की सबसे बड़ी समस्या है काला धन जिसे खत्म करने के लिए नोटबंदी सबसे अच्छा उपाय है। नोटबंदी की वजह से नौकरियां भी स्थिर हो जाएँगी जिससे लोगों को बेरोजगार होने का डर नहीं सताएगा। नोटबंदी होने की वजह से ही कैशलेस को बढ़ावा मिलता है। नोटबंदी एक ऐसा साधन है जिससे आतंकवाद पर नियंत्रण किया जा सकता है।

नोटबंदी की हानि : नोटबंदी से बहुत से प्रश्न उठते हैं लेकिन कुछ हद तक लोग काबू में जरुर आयेंगे। इन सब से एक बहुत बड़ी हानि हुई है इससे आम आदमियों की रोजमर्रा की जिंदगी में तकलीफ हुई है। बैंकों और एटीएम के सामने घंटों लाईनों में खड़े रहना, अस्पताल का बिल, बिजली का बिल, किराये की समस्या, और बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा।

इन सब तकलीफों का सामना करने के बाद भी सारे देश ने मोदी जी के बड़े और निर्णायक फैसलों में साथ दिया। बाहरी देशों ने भी इस फैसले के लिए मोदी जी की सराहना की है। उन लोगों को लगता है कि सरकार कुछ कदम तो उठा रही है जिससे भ्रष्टाचार खत्म हो सके। इससे भारत के विकास में बहुत मदद मिलेगी।

आज के समय में नोटबंदी पर बहुत सवाल उठाये जा रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि नोटबंदी फेल हुई है। यह एक स्कीम है जिसमें काले धन को सफेद किया जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि नोटबंदी से कोई फायदा नहीं हुआ है सिर्फ नुकसान हुआ है। भारत की आर्थिक प्रगति दर 7.5 से कम होकर 6.3 हो गई है।

नए नोटों को छापने में बहुत पैसा खर्च हुआ लेकिन आतंकवादी फंडिंग अब तक चालू हैं। हम उन आरोपों को टाल भी नहीं सकते हैं शायद नोटबंदी से जिस स्तर की अपेक्षाएं की गई थीं वे हासिल नहीं हुईं। सरकार का कहना है कि लगभग चार सौ रुपए के काले धन ने बैंको में अपनी जगह बना ही ली है।

नोटबंदी के परिणाम : जो काला धन भ्रष्टाचारी लोगों ने 500 और 1000 के नोटों के रूप में नकद रखा था इस समय में वे एक कागज मात्र बन कर रह गया है उसकी कोई भी कीमत नहीं रह गई है। नोटबंदी के कारण भ्रष्टाचारियों को अपना छिपाया हुआ काला धन सरकार को समर्पित करना पड़ा, कई लोगों ने इन्हें जला दिया और कईयों ने तो इसे फेंक दिया। जो नोट जाली थे वे बाजार में किसी भी काम के नहीं रहे थे।

उपसंहार : नोटबंदी और जीएसटी यह बहुत ही बड़े फैसले हैं इतिहास में शायद ही ऐसे बड़े फैसले कभी लिए गये हैं। अगर भारत को आगे बढ़ाना है तो इससे भी बड़े-बड़े कदम उठाने होंगे। हर चीज में कुछ गुण होते हैं तो कुछ कमियां भी होती हैं लेकिन यह बहाना नहीं होना चाहिए।

कभी-कभी कुछ अच्छी चीजें करने के लिए हिम्मत रखना, उसके लिए लाखों लोगों का भरोसा जीतना बहुत ही बड़ी बात होती है। हमें ऐसे बड़े फैसलों पर सरकार की मदद करनी चाहिए और खराब परिणाम पर सवाल भी उठाने चाहिए। सरकार और जनता दोनों को मिलकर देश को आगे ले जाना होगा यही जनतंत्र होता है। देश की जनता और सरकार इसके बहुत बड़े पहलू होते हैं।

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