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बाह्य प्राणायाम : विधि और लाभ How to do Bahya Pranayama in hindi

बाह्य प्राणायाम क्या है :-

बाह्य का अर्थ होता है बाहर। अथार्त यह एक ऐसा प्राणायाम है जिसमे अभ्यास करते समय साँस को बाहर छोड़ा जाता है, इसीलिये इसे बाह्य प्राणायाम कहा जाता है। इस प्राणायाम / Pranayam को “बाहरी साँस का योगा”भी कहा जाता है। बाह्य प्राणायाम को अंग्रेजी में External Retention कहा जाता है। जब व्यक्ति कपालभाति करता है, तब उसकी मूलाधार चक्र की शक्ति जागृत होती है और उस जागृत हुई अमूल्य शक्ति का उर्धारोहण (उर्ध + आरोहण) करने के लिए “बाह्य प्राणायाम”किया जाता है।

बाह्य प्राणायाम करने की विधि :

1- सबसे पहले किसी समतल और स्वस्छ जमीन पर चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन, सुखासन की अवस्था में बैठ जाएं।

2- सबसे पहले मध्यपट को नीचे झुकाये और फेकडो को फुलाने की कोशिश करे।

3- अब तेजी से अपना स्वास छोड़ें ऐसा करते समय अपने पेट पर भी थोडा जोर दे।

4- अब धीरे-धीरे अपनी छाती को ठोड़ी लगाने की कोशिश करे और अपने पेट को हल्के हाथो से दबाकर साँस बाहर निकलने की कोशिश करते रहे।

5- इसी अवस्था में कुछ देर तक रुकें।

6- अब धीरे-धीरे अपने पेट और मध्यपट को छोड़े और उन्हें हल्का महसुस होने दे।

7- अब इसी प्रिक्रिया को कम से कम 5-7 बार दोहरायें।

https://www.youtube.com/watch?v=AWuCb23U8os

बाह्य प्राणायाम करने की समय और अविधि :

यह भी पढ़ें :-  कपालभाती प्राणायम , उद्गीथ प्राणायाम

इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय खाली पेट इस प्राणायाम का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। एक सामान्य व्यक्ति को बाह्य प्राणायाम शुरुआत में तीन से पांच बार करना चाहिए। कुछ समय तक निरंतर अभ्यास करते रहने के बाद इसे बढ़ा देना चाहिए।

बाह्य प्राणायाम के लाभ :

1-पेट के सभी रोग से मुक्ति :-  इस प्राणायाम का अभ्यास करने से पेट के सभी रोग समाप्त हो जाते हैं। पेट के रोग कई सारे और रोगों का कारण बन सकते हैं। पेट के कुछ आम रोग हैं एसिडिटी, जी मिचलाना और अल्सर इन सभी रोगों से निजत पायी जा सकती है।

2- एकाग्रता को बढाता है :- मन और मष्तिष्क की एकाग्रता को बढ़ाना एक मुश्किल काम है, पर यह नामुमकिन नहीं है. एकाग्रता को बढ़ाने के लिए ढृढ़ता बेहद जरूरी है।

3-सुगर की बीमारी में फायदेमंद :- सुगर के रोगियों के लिए यह प्राणयाम बहुत ही लाभदायक है। डायबिटीज या मधुमेह उस चयापचय बीमारी को कहा जाता है, जहाँ व्यक्ति जिसमे व्यक्ति के खून में शुगर (रक्त शर्करा) की मात्रा जरुरत से ज्यादा हो जाती है।

4- पाचन शक्ति मजबूत होती है :- इसके नियमित अभ्यास से पाचन शक्ति को मजबूत किया जा सकता है। हमारा पाचन तंत्र अपनी तय की गई समय सीमा के अनुसार चलता है। इस समय सीमा के कारण हमें दिन के अलग-अलग पहर में भूख लगती है। खाने के बाद हमारा पचान तंत्र अपना काम करना आरंभ करता है।

5-कब्ज व् एसिडिटी में फायदेमंद :- इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से कब्ज व् एसिडिटी से मुक्ति पायी जा सकती है। कब्ज, पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है।

6-पौरुष ग्रंथि में फायदेमंद :- इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से पौरुष ग्रंथि की समस्या दूर हो जाती है। मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है।

7-हर्निया रोग में लाभ होता है :- हर्निया के रोगियों के लिए यह प्राणायाम अत्यंत लाभदायी होता है। मानव शरीर के कुछ अंग शरीर के अंदर खोखले स्थानों में स्थित है। इन खीखले स्थानों को “देहगुहा” (body cavity) कहते हैं। देहगुहा चमड़े की झिल्ली से ढकी रहती है। इन गुहाओं की झिल्लियाँ कभी-कभी फट जाती हैं और अंग का कुछ भाग बाहर निकल आता है। ऐसी विकृति को हर्निया (Hernia) कहते हैं।

8-मूत्रमार्ग से संबन्धित समस्या में लाभ :- इसके नियमित अभ्यास से मूत्रमार्ग से संबन्धित सारे रोग समाप्त हो जाते हैं। मूत्र पथ का संक्रमण (यूटीआई) एक बैक्टीरिया जनित संक्रमण है जो मूत्रपथ के एक हिस्से को संक्रमित करता है। जब यह मूत्र पथ निचले हिस्से को प्रभावित करता है तो इसे सामान्य मूत्राशयशोध (मूत्राशय का संक्रमण) कहा जाता है।

9-इन सबकी निवृत्ति करता है :- वीर्य की उधर्व गति करके स्वप्न-दोष, शीघ्रपतन आदि धातु-विकारों की निवृत्ति करता है।

10-शरीर में फुर्ती लाता है :- इसको करने से शरीर की थकान दूर होकर शरीर में फुर्ती आती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार थकान, रुचि और इच्छा कम होने की अवस्था है। शारीरिक थकान का सामान्य अर्थ मन अथवा शरीर की सामथ्र्य के घट जाने से लिया जाता है। ऐसी हालत में आदमी से काम नहीं होता या बहुत कम होता है। थका हुआ व्यक्ति निष्क्रिय पड़ा रहता है।

बाह्य प्राणायाम करने में सावधानी :-

यह प्राणायाम सुबह -सुबह खाली पेट करना चाहिए। हृदय व् उच्च रक्तचाप के रोगी भी बाह्य प्राणायाम का अभ्यास ना करें। गर्भवती महिलाओं को बाह्य प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। पीरियड के समय में महिलाये इस प्राणायाम को ना करे।

Engliah में यहाँ से जाने –  Bahya Pranayama Breathing Technique

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